वांछित मन्त्र चुनें

प्राञ्चं॑ य॒ज्ञं च॑कृम॒ वर्ध॑तां॒ गीः स॒मिद्भि॑र॒ग्निं नम॑सा दुवस्यन्। दि॒वः श॑शासुर्वि॒दथा॑ कवी॒नां गृत्सा॑य चित्त॒वसे॑ गा॒तुमी॑षुः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

prāñcaṁ yajñaṁ cakṛma vardhatāṁ gīḥ samidbhir agniṁ namasā duvasyan | divaḥ śaśāsur vidathā kavīnāṁ gṛtsāya cit tavase gātum īṣuḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्राञ्च॑म्। य॒ज्ञम्। च॒कृ॒म॒। वर्ध॑ताम्। गीः। स॒मित्ऽभिः॑। अ॒ग्निम्। नम॑सा। दु॒व॒स्य॒न्। दि॒वः। श॒शा॒सुः॒। वि॒दथा॑। क॒वी॒नाम्। गृत्सा॑य। चि॒त्। त॒वसे॑। गा॒तुम्। ई॒षुः॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:1» मन्त्र:2 | अष्टक:2» अध्याय:8» वर्ग:13» मन्त्र:2 | मण्डल:3» अनुवाक:1» मन्त्र:2


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हम लोग (नमसा) सत्कार से जिस-जिस (प्राञ्चम्) पहिले प्राप्त होनेवाले (यज्ञम्) सज्जनों की संगतिरूप यज्ञ को (चकृम) करें उससे (समिद्भिः) इन्धनादि पदार्थों से (अग्निम्) अग्निका (दुवस्यन्) सेवन करते हुए के समान हम लोगों की (गीः) अच्छी शिक्षा पाई हुई वाणी (वर्धताम्) बढ़े जो (कवीनाम्) मेधावियों के (दिवः) प्रकाश से (विदथा) विज्ञानों को (तवसे) विद्यावृद्ध (गृत्साय) मेधावी के लिये (शशासुः) सिखावें और (गातुम्) पृथिवी की (ईषुः) चाहना करें उनको हम लोग सत्कार से (चित्) ही आनन्दित करें ॥२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्य अवश्य विद्या से उत्तम शिक्षा पाई हुई वाणी को बढ़ाकर महान् विद्वानों के समीप से अच्छे शिक्षित होकर पृथिवी के राज्य करने की चाहना करें ॥२॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

वयं यं यं नमसा प्राञ्चं यज्ञं चकृम तेन समिद्भिरग्निं दुवस्यन्निवास्माकं गीर्वर्धताम् ये कवीनां दिवो विदथा तवसे गृत्साय शशासुर्गातुमीषुस्तान्वयन्नमसा चिदानन्दितांश्चकृम ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्राञ्चम्) यः प्रागञ्चति प्राप्नोति सः तम् (यज्ञम्) सत्संगाख्यं व्यवहारम् (चकृम) कुर्याम (वर्द्धताम्) (गीः) सुशिक्षिता वाक् (समिद्भिः) इन्धनादिभिः (अग्निम्) (नमसा) सत्कारेण (दुवस्यन्) सेवमानः (दिवः) प्रकाशात् (शशासुः) अनुशासतु (विदथा) विविधानि विज्ञानानि (कवीनाम्) मेघाविनां विदुषाम् (गृत्साय) मेधाविने (चित्) (तवसे) विद्यावृद्धाय (गातुम्) पृथिवीम् (ईषुः) इच्छन्तु ॥२॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्या अवश्यं विद्यासुशिक्षितां वाचं वर्धयित्वा महाविदुषामध्यापकानां शासने सुशिक्षिता भूत्वा पृथिवीराज्यं कर्तुमिच्छन्तु ॥२॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी विद्येने सुशिक्षित होऊन वाणी समृद्ध करावी व महान विद्वानांकडून सुशिक्षित होऊन पृथ्वीवर राज्य करण्याची कामना करावी. ॥ २ ॥