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त्वं नो॑ असि भार॒ताग्ने॑ व॒शाभि॑रु॒क्षभिः॑। अ॒ष्टाप॑दीभि॒राहु॑तः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvaṁ no asi bhāratāgne vaśābhir ukṣabhiḥ | aṣṭāpadībhir āhutaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वम्। नः॒। अ॒सि॒। भा॒र॒त॒। अग्ने॑। व॒शाभिः॑। उ॒क्षऽभिः॑। अ॒ष्टाऽप॑दीभिः। आऽहु॑तः॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:7» मन्त्र:5 | अष्टक:2» अध्याय:5» वर्ग:28» मन्त्र:5 | मण्डल:2» अनुवाक:1» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (भारत) सब विषयों को धारण करनेवाले (अग्ने) विद्वान् ! जो (वशाभिः) मनोहर गौओं से वा (उक्षभिः) बैलों से वा (अष्टापदीभिः) जिनमें आठ सत्यासत्य के निर्णय करनेवाले चरण हैं। उन वाणियों से (आऽहुतः) बुलाये हुए आप (नः) हम लोगों के लिये सुख दिये हुए (असि) हैं। सो हम लोगों से सत्कार पाने योग्य हैं ॥५॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य आठ स्थानों में उच्चारण की हुई वाणी से सत्य का उपदेश करता हुआ गवादि पशुओं की रक्षा से सबकी पालना का विधान करता है, वह सबको रखने के योग्य है ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे भारताऽग्ने यो वशाभिरुक्षभिरष्टापदीभिराहुतस्त्वं नोऽस्मभ्यं सुखं दत्तवानसि सोऽस्माभिरर्च्चनीयोऽसि ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वम्) (नः) अस्मभ्यम् (असि) भवसि (भारत) धारक (अग्ने) विद्वन् (वशाभिः) कमनीयाभिर्गोभिः (उक्षभिः) वृषभैः (अष्टापदीभिः) अष्टौ पादौ यासां ताभिर्वाग्भिः (आहुतः) आमन्त्रितः ॥५॥
भावार्थभाषाः - यो मनुष्योऽष्टस्थानोच्चारितया वाचा सत्यमुपदिशन् गवादिरक्षणेन सर्वस्य पालनं विधत्ते स सर्वैः पालनीयो भवेत् ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो माणूस आठ स्थानापासून उच्चारित केलेल्या वाणीने सत्याचा उपदेश करीत गायी इत्यादी पशूंचे रक्षण करून सर्वांचे पालन करण्याचे विधान करतो तो सर्वांचे पालन करणारा असतो. ॥ ५ ॥