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स बो॑धि सू॒रिर्म॒घवा॒ वसु॑पते॒ वसु॑दावन्। यु॒यो॒ध्य१॒॑स्मद्द्वेषां॑सि॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa bodhi sūrir maghavā vasupate vasudāvan | yuyodhy asmad dveṣāṁsi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। बो॒धि॒। सू॒रिः। म॒घवा॑। वसु॑ऽपते। वसु॑ऽदावन्। यु॒यो॒धि। अ॒स्मत्। द्वेषां॑सि॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:6» मन्त्र:4 | अष्टक:2» अध्याय:5» वर्ग:27» मन्त्र:4 | मण्डल:2» अनुवाक:1» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वसुपते) धनों की पालना करने और (वसुदावन्) धनों को देनेवाले जो (मघवा) परमप्रशंसित धनयुक्त (सूरिः) विद्वान् ! आप (बोधि) सब व्यवहारों को जानते हैं। (सः) सो आप (अस्मत्) हम लोगों के (द्वेषांसि) वैर भरे हुए कामों को (युयोधि) अलग कीजिये ॥४॥
भावार्थभाषाः - जो राग-द्वेषरहित गुणग्राही जन होते हैं, वे औरों को भी अपने सदृश करके दाता होते हुए लक्ष्मीवान् होते हैं ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे वसुपते वसुदावन् यो मघवा सूरिर्भवान् बोधि स त्वमस्मद्द्वेषांसि युयोधि ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) (बोधि) जानाति (सूरिः) विद्वान् (मघवा) परमपूजितधनयुक्तः (वसुपते) वसूनां पालक (वसुदावन्) यो वसूनि द्रव्याणि ददाति तत्सम्बुद्धौ (युयोधि) वियोजय (अस्मत्) अस्माकं सकाशात् (द्वेषांसि) द्वेषयुक्तानि कर्माणि ॥४॥
भावार्थभाषाः - ये रागद्वेषविरहा गुणग्राहिणो जना भवन्ति तेऽन्यानपि स्वसदृशान् कृत्वा दातारस्सन्तः श्रीमन्तो भवन्ति ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे रागद्वेषरहित गुणग्राही लोक असतात ते इतरांनाही आपल्यासारखे करून दाता बनून श्रीमंत होतात. ॥ ४ ॥