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प्र॒द॒क्षि॒णिद॒भि गृ॑णन्ति का॒रवो॒ वयो॒ वद॑न्त ऋतु॒था श॒कुन्त॑यः। उ॒भे वाचौ॑ वदति साम॒गाइ॑व गाय॒त्रं च॒ त्रैष्टु॑भं॒ चानु॑ राजति॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pradakṣiṇid abhi gṛṇanti kāravo vayo vadanta ṛtuthā śakuntayaḥ | ubhe vācau vadati sāmagā iva gāyatraṁ ca traiṣṭubhaṁ cānu rājati ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र॒ऽद॒क्षि॒णित्। अ॒भि। गृ॒ण॒न्ति॒। का॒रवः॑। वयः॑। वद॑न्तः। ऋ॒तु॒ऽथा। श॒कुन्त॑यः। उ॒भे इति॑। वाचौ॑। व॒द॒ति॒। सा॒म॒ऽगाःऽइ॑व। गा॒य॒त्रम्। च॒। त्रैस्तु॑भम्। च॒। अनु॑। रा॒ज॒ति॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:43» मन्त्र:1 | अष्टक:2» अध्याय:8» वर्ग:12» मन्त्र:1 | मण्डल:2» अनुवाक:4» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब तीन चावाले तेतालीसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में फिर उपदेशक के गुणों को कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - जैसे (तुथा) तुओं में (वदन्तः) बोलते हुए (शकुन्तयः) शक्तिमान् (वयः) पक्षी कहते हैं वैसे (कारवः) कारुकजन (उभे) ऐहिक और पारमार्थिक सुख सिद्ध करनेवाली (वाचौ) वाणियों का (अभि,गृणन्ति) सब ओर से उपदेश करते हैं जो (प्रदक्षिणित्) प्रदक्षिणा को प्राप्त होनेवाला (सामगाइव) सामगान गानेवाले के समान (गायत्रम्) गायत्री (च) और उष्णिहादि (त्रैष्टुभम्) त्रिष्टुभ को (च) और जगती आदि को भी (वदति) कहता है वह ऐहिक पारमार्थिक दोनों वाणियों को (अनु,राजति) अनुकूलता से प्रकाशित करता है ॥१॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे पक्षी तु-तु में नाना प्रकार के शब्दों का उच्चारण करते हैं, वैसे शिल्पिजन डर को छोड़कर अनेक विद्या के प्रकाशक शब्दों को कहें ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनरुपदेशकगुणानाह।

अन्वय:

यथर्तुथा वदन्तो शकुन्तयो वयो वदन्ति तथा कारव उभे वाचावभिगृणन्ति यः प्रदक्षिणित् सामगाइव गायत्रं च त्रैष्टुभं च वदति स उभे वाचावनुराजति ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्रदक्षिणित्) यः प्रदक्षिणामेति सः अत्र व्यत्ययेनैकवचनम् (अभि) आभिमुख्ये (गृणन्ति) उपदिशन्ति (कारवः) कारुकाः (वयः) पक्षिणः (वदन्तः) (तुथा) तुषु (शकुन्तयः) शक्तिमन्तः (उभे) ऐहिकपारमार्थिकसुखसाधिके (वाचौ) (वदति) (सामगाइव) यः सामानि गायति तद्वत् (गायत्रम्) गायत्रीम् (च) उष्णिहादीनि (त्रैष्टुभम्) त्रिष्टुभम् (च) जगत्यादीनि (अनु) (राजति) प्रकाशयति ॥१॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा पक्षिण तुमृतुं प्रति नानाशब्दानुच्चारयन्ति तथा शिल्पिनो भयन्त्यक्त्वाऽनेकविद्याप्रकाशकान् शब्दान् वदन्तु ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात उपदेशकाच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागील सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी. ॥

भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे पक्षी निरनिराळ्या ऋतूत निरनिराळ्या शब्दांचे उच्चारण करतात तसे शिल्पीजनांनी निर्भयतेने अनेक विद्या प्रकट करणाऱ्या वाणीचा उपयोग करावा. ॥ १ ॥