अव॑ क्रन्द दक्षिण॒तो गृ॒हाणां॑ सुम॒ङ्गलो॑ भद्रवा॒दी श॑कुन्ते। मा नः॑ स्ते॒न ई॑शत॒ माघशं॑सो बृ॒हद्व॑देम वि॒दथे॑ सु॒वीराः॑॥
ava kranda dakṣiṇato gṛhāṇāṁ sumaṅgalo bhadravādī śakunte | mā naḥ stena īśata māghaśaṁso bṛhad vadema vidathe suvīrāḥ ||
अव॑। क्र॒न्द॒। द॒क्षि॒ण॒तः। गृ॒हाणा॑म्। सु॒ऽम॒ङ्गलः॑। भ॒द्र॒ऽवा॒दी। श॒कु॒न्ते॒। मा। नः॒। स्ते॒नः। ई॒श॒त॒। मा। अ॒घऽशं॑सः। बृ॒हत्। व॒दे॒म॒। वि॒दथे॑। सु॒ऽवीराः॑॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को कहते हैं।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह।
हे शकुन्ते सुमङ्गलो भद्रवादी संस्त्वं गृहाणां दक्षिणतोऽवक्रन्द यतः स्तेनो नो मेशत अघशंसो नो मेशत यतस्सुवीरा वयं विदथे बृहद्वदेम ॥३॥