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ता न॒ आ वो॑ळ्हमश्विना र॒यिं पि॒शङ्ग॑संदृशम्। धिष्ण्या॑ वरिवो॒विद॑म्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tā na ā voḻham aśvinā rayim piśaṅgasaṁdṛśam | dhiṣṇyā varivovidam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ता। नः॒। आ। वो॒ळ्ह॒म्। अ॒श्वि॒ना॒। र॒यिम्। पि॒शङ्ग॑ऽसन्दृशम्। धिष्ण्या॑। व॒रि॒वः॒ऽविद॑म्॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:41» मन्त्र:9 | अष्टक:2» अध्याय:8» वर्ग:8» मन्त्र:4 | मण्डल:2» अनुवाक:4» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (धिष्ण्या) शब्दायमान हों वा स्तुति किये जावें वे (अश्विना) सर्वत्र होनेवाले अग्नि और वायु (नः) हम लोगों के लिये (वरिवोविदम्) जिससे सेवा को प्राप्त होते वा (पिशङ्गसंदृशम्) सुन्दर वर्ण को देखते हैं उस (रयिम्) धन को (आ,वोढम्) अच्छे प्रकार प्राप्त करते हैं (ता) उनका उपदेश करो ॥९॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि जिन अग्नि और वायु से पुष्कल धन को प्राप्त होते हैं, उनको यथावत् जानें ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे मनुष्या यौ धिष्ण्याऽश्विना नो वरिवोविदं पिशङ्गसंदृशं रयिमावोढं समन्तात्प्रापयतस्ता उपदिशत ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ता) तौ (नः) अस्मभ्यम् (आ) (वोढम्) वहतः (अश्विना) (रयिम्) (पिशङ्गसंदृशम्) पिशङ्गं शोभनं वर्णं सम्यग् पश्यन्ति येन तम् (धिष्ण्या) यौ धेष्येते शब्द्येते स्तूयेते तौ (वरिवोविदम्) वरिवः सेवनं विन्दन्ति येन तम् ॥९॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्याभ्यामग्निवायुभ्यां पुष्कलां श्रियं प्राप्नुवन्ति तौ यथावद्देयौ ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्या अग्नी व वायूमुळे पुष्कळ धन प्राप्त होते त्यांना माणसांनी योग्यरीत्या जाणावे. ॥ ९ ॥