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देवता: वायु: ऋषि: गृत्समदः शौनकः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः

वायो॒ ये ते॑ सह॒स्रिणो॒ रथा॑स॒स्तेभि॒रा ग॑हि। नि॒युत्वा॒न्त्सोम॑पीतये॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vāyo ye te sahasriṇo rathāsas tebhir ā gahi | niyutvān somapītaye ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वायो॒ इति॑। ये। ते॒। स॒ह॒स्रिणः॑। रथा॑सः। तेभिः॑। आ। ग॒हि॒। नि॒युत्वा॑न्। सोम॑ऽपीतये॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:41» मन्त्र:1 | अष्टक:2» अध्याय:8» वर्ग:7» मन्त्र:1 | मण्डल:2» अनुवाक:4» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब इक्कीस चावाले इकतालीसवें सूक्त का आरम्भ है, इसके प्रथम मन्त्र में अध्यापक के विषय को कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वायो) पवन के समान वर्त्तमान विद्वान् ! (ये) जो (ते) आपके वायुवद् वेगवाले (सहस्रिणः) असंख्यात वेगादि गुणोंवाले (रथासः) रमणीय यान हैं (तेभिः) उनके साथ (नियुत्वान्) नियमयुक्त होते हुए (सोमपीतये) उत्तम ओषधियों के रस पीने को (आ,गहि) आइये ॥१॥
भावार्थभाषाः - पवन के असंख्य जो वेग आदि कर्म हैं, उनको जानके इधर-उधर मनुष्यों को जाना-आना चाहिये ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथाध्यापकविषयमाह।

अन्वय:

हे वायो वायुवद्वर्त्तमान विद्वन् ये ते वायुवेगाः सहस्रिणो रथासः सन्ति तेभिस्सह नियुत्वान् सन् सोमपीतय आगहि आगच्छ ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वायो) (ये) (ते) तव (सहस्रिणः) सहस्रमसङ्ख्याता वेगादयो गुणाः सन्ति येषां ते (रथासः) रमणीयाः (तेभिः) तैः (आ,गहि) आगच्छ (नियुत्वान्) नियमनियुक्तः (सोमपीतये) सोमौषधिरसपानाय ॥१॥
भावार्थभाषाः - वायोरसङ्ख्यानि यानि वेगादीनि कर्माणि सन्ति तानि विदित्वा इतस्ततो मनुष्या गच्छन्त्वागच्छन्तु ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात अध्यापक व अध्येता, सूर्य, चंद्र, अग्नी, वायू, परमेश्वरोपासना व स्त्री-पुरुष क्रमाचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताची मागील सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - वायूचे असंख्य वेग इत्यादी कर्म आहेत. त्यांना जाणून माणसांनी गमनागमन करावे. ॥ १ ॥