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धियं॑ पू॒षा जि॑न्वतु विश्वमि॒न्वो र॒यिं सोमो॑ रयि॒पति॑र्दधातु। अव॑तु दे॒व्यदि॑तिरन॒र्वा बृ॒हद्व॑देम वि॒दथे॑ सु॒वीराः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

dhiyam pūṣā jinvatu viśvaminvo rayiṁ somo rayipatir dadhātu | avatu devy aditir anarvā bṛhad vadema vidathe suvīrāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

धिय॑म्। पू॒षा। जि॒न्व॒तु॒। वि॒श्व॒म्ऽइ॒न्वः। र॒यिम्। सोमः॑। र॒यि॒ऽपतिः॑। द॒धा॒तु॒। अव॑तु। दे॒वी। अदि॑तिः। अ॒न॒र्वा। बृ॒हत्। व॒दे॒म॒। वि॒दथे॑। सु॒ऽवीराः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:40» मन्त्र:6 | अष्टक:2» अध्याय:8» वर्ग:6» मन्त्र:6 | मण्डल:2» अनुवाक:4» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वानो ! जिस प्रकार से (पूषा) प्राण मेरी (धियम्) बुद्धि वा कर्म को (जिन्वतु) प्राप्त हो वा सुखी करे (विश्वमिन्वः) तथा जो विश्व को व्याप्त होता वह (रयिपतिः) धन की रक्षा करनेवाला (सोमः) पदार्थों का समूह (रयिम्) लक्ष्मी को (दधातु) धारण करे (अनर्वा) तथा जिसके अविद्यमान घोड़े हैं वह (देवी) दिव्यगुणवाली (अदितिः) माता बुद्धि वा कर्म की (अवतु) रक्षा करे जिससे (सुवीराः) शोभन वीरोंवाले हम लोग (विदथे) संग्राम में (बृहत्) बहुत (वदेम) कहें ॥६॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे सब पदार्थ धन बुद्धि आरोग्यता और आयु के बढ़ानेवाले हों, वैसे विधान करो, जिससे सब मनुष्य बहुत सुख को प्राप्त होवें ॥६॥ इस सूक्त में प्राण अपान अग्नि वायु और विद्वानों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ संगति है, यह जानना चाहिये ॥ यह चालीसवाँ सूक्त और छठा वर्ग समाप्त हुआ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे विद्वांसो येन प्रकारेण पूषा मे धियं जिन्वतु विश्वमिन्वो रयिपतिस्सोमो रयिं दधातु। अनर्वा देव्यदितिर्धियमवतु यतस्सुवीरा वयं विदथे बृहद्वदेम ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (धियम्) प्रज्ञां कर्म वा (पूषा) प्राणः (जिन्वतु) प्राप्नोतु सुखयतु वा (विश्वमिन्वः) विश्वं मिनोति व्याप्नोति यस्सः (रयिम्) श्रियम् (सोमः) पदार्थसमूहः (रयिपतिः) धनरक्षकः (दधातु) (अवतु) रक्षतु (देवी) दिव्यगुणा (अदितिः) माता (अनर्वा) अविद्यमाना अश्वा यस्याः सा (बृहत्) (वदेम) (विदथे) (सुवीराः) ॥६॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या यथा सर्वे पदार्थाः श्रीप्रज्ञारोग्यायुषां वर्द्धकाः स्युस्तथा विदधतं येन सर्वे मनुष्या महत्सुखं प्राप्नुयुरिति ॥६॥ अत्र प्राणापानाग्निवायुविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या॥ इति चत्वारिंशत्तमं सूक्तं षष्ठो वर्गश्च समाप्तः॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! सर्व पदार्थ धन, बुद्धी, आरोग्य व आयुष्य वाढविणारे असतात असे विधान करा. ज्यामुळे सर्व माणसांना अत्यंत सुख प्राप्त होईल. ॥ ६ ॥