सोमा॑पूषणा॒ जन॑ना रयी॒णां जन॑ना दि॒वो जन॑ना पृथि॒व्याः। जा॒तौ विश्व॑स्य॒ भुव॑नस्य गो॒पौ दे॒वा अ॑कृण्वन्न॒मृत॑स्य॒ नाभि॑म्॥
somāpūṣaṇā jananā rayīṇāṁ jananā divo jananā pṛthivyāḥ | jātau viśvasya bhuvanasya gopau devā akṛṇvann amṛtasya nābhim ||
सोमा॑पूषणा। जन॑ना। र॒यी॒णाम्। जन॑ना। दि॒वः। जन॑ना। पृ॒थि॒व्याः। जा॒तौ। विश्व॑स्य। भुव॑नस्य। गो॒पौ। दे॒वाः। अ॒कृ॒ण्व॒न्। अ॒मृत॑स्य। नाभि॑म्॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब चालीसवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में पवन के गुणों का उपदेश कहते हैं।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ वायुगुणनाह।
हे मनुष्या देवा यौ रयीणां जनना दिवो जनना पृथिव्या जनना जातौ विश्वस्य भुवनस्य गोपौ सोमापूषणाऽमृतस्य नाभिमकृण्वन् तौ विजानीत ॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)x