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शृङ्गे॑व नः प्रथ॒मा ग॑न्तम॒र्वाक्छ॒फावि॑व॒ जर्भु॑राणा॒ तरो॑भिः। च॒क्र॒वा॒केव॒ प्रति॒ वस्तो॑रुस्रा॒ऽर्वाञ्चा॑ यातं र॒थ्ये॑व शक्रा॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

śṛṅgeva naḥ prathamā gantam arvāk chaphāv iva jarbhurāṇā tarobhiḥ | cakravākeva prati vastor usrārvāñcā yātaṁ rathyeva śakrā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

शृङ्गा॒ऽइव। नः॒। प्र॒थ॒मा। ग॒न्त॒म्। अ॒र्वाक्। श॒फौऽइ॑व। जर्भु॑राणा। तरः॑ऽभिः। च॒क्र॒वा॒काऽइ॑व। प्रति॑। वस्तोः॑। उ॒स्रा॒। अ॒र्वाञ्चा॑। या॒त॒म्। र॒थ्या॑ऽइव। श॒क्रा॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:39» मन्त्र:3 | अष्टक:2» अध्याय:8» वर्ग:4» मन्त्र:3 | मण्डल:2» अनुवाक:4» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (उस्रा) किरणों के समान वर्त्तमान (रथ्येव) रथ के लिये हितकारी वस्तु के तुल्य (शक्रा) शक्तिमान् तुम लोग (नः) हम लोगों के (अर्वाक्) पीछे (गन्तम्) प्राप्त हुए को (शृङ्गेव) शृङ्गों के समान सम्बन्ध करने तथा हिंसा करनेवाले (शफाविव) जैसे खुर परस्पर सम्बन्ध करे हुये हैं वैसे (जर्भुराणा) निरन्तर धारण करनेवाले (प्रथमा) पहिले सनातन वा (तरोभिः) जिनसे तैरते हैं उन नौकाओं से जैसे (चक्रवाकेव) चकवी-चकवा (प्रति) प्रति (वस्तोः) दिन (अर्वाञ्चा) पीछे जानेवाले होकर (यातम्) प्राप्त हूजिये ॥३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। यदि अग्नि-वायु शिल्प कार्यों में संयुक्त किये जावें तो बहुत कार्य्यों को सिद्ध करें ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे उस्रा रथ्येव शक्रा युवां नोऽर्वाग्गन्तं शृङ्गेव शफाविव जर्भुराणा प्रथमा तरोभिश्चक्रवाकेव प्रति वस्तोरर्वाञ्चा यातम् ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (शृङ्गेव) शृङ्गवत्सम्बन्धिनौ हिंसकौ (नः) अस्मान् (प्रथमा) आदिमौ (गन्तम्) प्राप्नुतम् (अर्वाक्) पश्चात् (शफाविव) यथा खुरौ परस्परेण सम्बन्धौ (जर्भुराणा) भृशं धर्त्तारौ (तरोभिः) तरन्ति यैस्तानि तरांसि नौकादीनि तैः (चक्रवाकेव) यथा चक्रवाकौ पक्षिणौ (प्रति) (वस्तोः) दिनम् (उस्रा) किरणवद्वर्त्तमानौ (अर्वाञ्चा) अर्वाग्गामिनौ (यातम्) प्राप्नुतम् (रथ्येव) यथा रथाय हितानि (शक्रा) शक्तिमन्तौ ॥३॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यद्यग्निवायू शिल्पकार्येषु सम्प्रयुज्येतां तर्हि बहूनि कार्याणि साधयेताम् ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जर अग्नी, वायू, शिल्पकार्यात संयुक्त केले तर पुष्कळ कार्य सिद्ध होते. ॥ ३ ॥