ग्रावा॑णेव॒ तदिदर्थं॑ जरेथे॒ गृध्रे॑व वृ॒क्षं नि॑धि॒मन्त॒मच्छ॑। ब्र॒ह्माणे॑व वि॒दथ॑ उक्थ॒शासा॑ दू॒तेव॒ हव्या॒ जन्या॑ पुरु॒त्रा॥
grāvāṇeva tad id arthaṁ jarethe gṛdhreva vṛkṣaṁ nidhimantam accha | brahmāṇeva vidatha ukthaśāsā dūteva havyā janyā purutrā ||
ग्रावा॑णाऽइव। तत्। इत्। अर्थ॑म्। ज॒रे॒थे॒ इति॑। गृध्रा॑ऽइव। वृ॒क्षम्। नि॒धि॒ऽमन्त॑म्। अच्छ॑। ब्र॒ह्माणा॑ऽइव। वि॒दथे॑। उ॒क्थ॒ऽशासा॑। दू॒ताऽइ॑व। हव्या॑। जन्या॑। पु॒रु॒ऽत्रा॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब उनतालीसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में वायु और अग्नि के गुणों को कहते हैं।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ वाय्वग्निगुणानाह।
हे विद्वांसो यौ वाय्वग्नी ग्रावाणेव तदर्थमिदेव जरेथे विदथे गृध्रेव निधिमन्तं वृक्षमच्छ जरेथे ब्रह्माणेवोक्थशासा दूतेव हव्या जन्या पुरुत्रा वर्त्तेते तौ यूयं संप्रयोजयत ॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात वायू व अग्नी इत्यादी पदार्थ किंवा विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.