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यो नो॑ मरुतो वृ॒कता॑ति॒ मर्त्यो॑ रि॒पुर्द॒धे व॑सवो॒ रक्ष॑ता रि॒षः। व॒र्तय॑त॒ तपु॑षा च॒क्रिया॒भि तमव॑ रुद्रा अ॒शसो॑ हन्तना॒ वधः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yo no maruto vṛkatāti martyo ripur dadhe vasavo rakṣatā riṣaḥ | vartayata tapuṣā cakriyābhi tam ava rudrā aśaso hantanā vadhaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यः। नः॒। म॒रु॒तः॒। वृ॒कऽता॑ति। मर्त्यः॑। रि॒पुः। द॒धे। व॒स॒वः॒। रक्ष॑त। रि॒षः। व॒र्तय॑त। तपु॑षा। च॒क्रिया॑। अ॒भि। तम्। अव॑। रु॒द्राः॒। अ॒शसः॑। ह॒न्त॒न॒। वध॒रिति॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:34» मन्त्र:9 | अष्टक:2» अध्याय:7» वर्ग:20» मन्त्र:4 | मण्डल:2» अनुवाक:4» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजपुरुषों के विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वसवः) वसु संज्ञावाले (मरुतः) विद्वान् मनुष्यो ! (यः) जो (वृकताति) वज्र ही (मर्त्यः) मरणधर्मा (रिपुः) चोर (तपुषा) सब ओर से ताप देनेवाले क्रोध आदि से (नः) हमलोगों को (दधे) धारण करता है उससे (रिषः) हिंसकों को अलग (रक्षत) रखो, हे (रुद्राः) दुष्टों को रुलानेवाले मध्यम विद्वानो ! तुम (चक्रिया) चक्र से (अशसः) अहिंसक जो दूसरों का विनाश नहीं करता उसको (अव,हन्तन) न मारो, जो हम लोगों की रक्षा करता है, उसकी सब ओर से रक्षा करो, जिसने और का (वधः) बध किया है, उसको कारागृह अर्थात् जेलखाना में (अभि,वर्त्तयत) सब ओर से वर्त्ताओ ॥९॥
भावार्थभाषाः - राजपुरुषों को हिंसकों से प्रजाजनों को अलग रख शत्रुओं का निवारण कर वा बाँध के धर्म से राज्य का शासन करना चाहिये ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राजपुरुषविषयमाह।

अन्वय:

हे वसवो मरुतो यो वृकताति मर्त्यो रिपुस्तपुषा नोऽस्मान्दधे तस्माद्रिषोऽस्मात्पृथग्रक्षत। हे रुद्रा यूयं चक्रिया अशसोऽवहन्तन योऽस्मान् रक्षति तमभिरक्षत येनान्यस्य वधः क्रियते तं कारागृहेऽभिवर्त्तयत ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) (नः) अस्मान् (मरुतः) विद्वांसः (वृकताति) वृको वज्र एव (मर्त्यः) (रिपुः) स्तेनः। रिपुरिति स्तेना० निघं० ३। ३४ (दधे) दधाति। अत्र लडर्थे लिट् (वसवः) वसुसंज्ञकाः (रक्षत) अत्राऽन्येषामपीति दीर्घः (रिषः) हिंसकान् (वर्त्तयत) (तपुषा) परितापेन क्रोधादिना (चक्रिया) चक्रेण (अभि) अभितः (तम्) (अव) (रुद्राः) मध्यमा विद्वांसो दुष्टानां रोदयितारः (अशसः) अहिंसकस्य (हन्तन) घ्नत। अत्राऽन्येषामपीति दीर्घः (वधः) हननम् ॥९॥
भावार्थभाषाः - राजपुरुषैर्हिंसकेभ्यः प्रजाः पृथग् रक्ष्य रिपून्निवार्य्य बध्वा वा धर्मेण राज्यं शासनीयम् ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राजपुरुषांनी हिंसकांपासून प्रजेला दूर ठेवावे. शत्रूंचे निवारण करून धर्माने राज्याचे प्रशासन चालवावे. ॥ ९ ॥