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या सु॑बा॒हुः स्व॑ङ्गु॒रिः सु॒षूमा॑ बहु॒सूव॑री। तस्यै॑ वि॒श्पत्न्यै॑ ह॒विः सि॑नीवा॒ल्यै जु॑होतन॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yā subāhuḥ svaṅguriḥ suṣūmā bahusūvarī | tasyai viśpatnyai haviḥ sinīvālyai juhotana ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

या। सु॒ऽबा॒हुः। सु॒ऽअ॒ङ्गु॒रिः। सु॒ऽसूमा॑। ब॒हु॒ऽसूव॑री। तस्यै॑। वि॒श्पत्न्यै॑। ह॒विः। सि॒नी॒वा॒ल्यै। जु॒हो॒त॒न॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:32» मन्त्र:7 | अष्टक:2» अध्याय:7» वर्ग:15» मन्त्र:7 | मण्डल:2» अनुवाक:3» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (या) जो (सुबाहुः) सुन्दर बाहु और (स्वङ्गुरिः) सुन्दर अंगुलियोंवाली तथा (सुषूमा) सुन्दर पुत्रोत्पत्ति करने और (बहुसूवरी) बहुत सन्तानों की उत्पन्न करनेरवाली स्त्री है (तस्यै) उस (विश्पत्न्यै) प्रजाजनों की पालनेवाली (सिनीवाल्यै) प्रेम से सम्बद्ध हुई के लिये (हविः) देने योग्य वीर्य को (जुहोतन) छोड़ो ॥७॥
भावार्थभाषाः - पुरुषों को यह जानना चाहिये कि वे ही पत्नी उत्तम होती हैं, जो सर्वाङ्ग सुन्दरी बहुत प्रजा उत्पन्न करनेवाली शुभगुणस्वभावयुक्त हों, उनमें से एक-एक पुरुष को चाहिये कि एक-एक स्त्री के साथ विवाह करके प्रजा उत्पन्न करें ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे मनुष्या या सुबाहुः स्वङ्गुरिः सुषूमा बहुसूवरी स्त्री तस्यै विश्पत्न्यै सिनीवाल्यै हविर्जुहोतन ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (या) (सुबाहुः) शोभनौ बाहू यस्याः सा (स्वङ्गुरिः) शोभनाऽङ्गुरयोऽङ्गुलयो यस्याः सा (सुषूमा) सुष्ठु प्रसवित्री (बहुसूवरी) बहूनामपत्यानां जनयित्री तस्यै (विश्पत्न्यै) विशः प्रजायाः पालयित्र्यै (हविः) दातुमर्हं वीर्यम् (सिनीवाल्यै) प्रेमबद्धायै (जुहोतन) प्रक्षिपत ॥७॥
भावार्थभाषाः - पुरुषैस्ता एव पत्न्यः सूत्तमाः सन्ति याः सर्वाङ्गैः सुन्दर्यः बहुप्रजोत्पादयित्र्यः शुभगुणकर्मस्वभावा भवेयुरिति वेद्यम्। तासां मध्यादेकैकेन पुरुषेणैकैकया सह विवाहं कृत्वा प्रजोत्पत्तिर्विधेया ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - पुरुषांनी हे जाणले पाहिजे की, ज्या स्त्रिया सर्वांग सुंदर पुष्कळ संताने उत्पन्न करणाऱ्या, शुभ गुणकर्मस्वभावयुक्त असतील तर एका पुरुषाने एका स्त्रीबरोबर विवाह करून संतती उत्पन्न करावी. ॥ ७ ॥