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ब्रह्म॑ण॒स्पते॑रभवद्यथाव॒शं स॒त्यो म॒न्युर्महि॒ कर्मा॑ करिष्य॒तः। यो गा उ॒दाज॒त्स दि॒वे वि चा॑भजन्म॒हीव॑ री॒तिः शव॑सासर॒त्पृथ॑क्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

brahmaṇas pater abhavad yathāvaśaṁ satyo manyur mahi karmā kariṣyataḥ | yo gā udājat sa dive vi cābhajan mahīva rītiḥ śavasāsarat pṛthak ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ब्रह्म॑णः। पतेः॑। अ॒भ॒व॒त्। य॒था॒ऽव॒शम्। स॒त्यः। म॒न्युः। महि॑। कर्म॑। क॒रि॒ष्य॒तः। यः। गाः। उ॒त्ऽआज॑त्। सः। दि॒वे। वि। च॒। अ॒भ॒ज॒त्। म॒हीऽइ॑व। री॒तिः। शव॑सा। अ॒स॒र॒त्। पृथ॑क्॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:24» मन्त्र:14 | अष्टक:2» अध्याय:7» वर्ग:3» मन्त्र:4 | मण्डल:2» अनुवाक:3» मन्त्र:14


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर अध्यापक लोग कैसे हों, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है।

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो (महि) बड़े (कर्म) काम को (करिष्यतः) करनेवाले (ब्रह्मणः,पतेः) धन के स्वामी के समीप से (यथावशम्) वशके अनुकूल विचारपूर्वक (सत्यः) श्रेष्ठ, अधर्म त्यागार्थ ही (मन्युः) क्रोध (अभवत्) होवे (सः) वह जैसे (दिवे) प्रकाश के लिये सूर्य (गाः) किरणों को (उत्,आजत्) ऊपर नीचे पहुँचाता है वैसे धर्म के प्रकाश के लिये होता है जो (महीव) जैसे श्रेष्ठ माननीय (रीतिः) उत्तम रीति नीति (शवसा) बल के साथ (पृथक्) अलग-अलग (असरत्) प्राप्त होवे उसको (च) भी (वि,अभजत्) वह उक्त क्रोध का विभाग करे वा विशेष कर सेवे ॥१४॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो पुरुषार्थी अध्यापक लोग अच्छी शिक्षा को पाकर सत्य में प्रीति और असत्य पर क्रोध को धारण करते हैं, वे बड़ी सुशीलता को प्राप्त होके यथेष्ट कार्य को प्राप्त होते हैं ॥१४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनरध्यापकाः कीदृशाः स्युरित्याह।

अन्वय:

यो महि कर्म करिष्यतो ब्रह्मणस्पतेः सकाशाद्यथावशं सत्यो मन्युरभवत्स यथा दिवे सूर्य्यो गा उदाजत् तथा धर्मं प्रकाशयति या महीव रीतिः शवसा पृथगसरतां च व्यभजत् ॥१४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ब्रह्मणः) धनस्य (पतेः) पत्युः। अत्र षष्ठीयुक्तश्छन्दसि वेति पतिशब्दस्य घि संज्ञा (अभवत्) भवेत् (यथावशम्) वशमनतिक्रम्य यथा स्यात्तथा (सत्यः) सत्सु साधुः (मन्युः) क्रोधः (महि) महत् (कर्म)। अत्र संहितायामिति दीर्घः (करिष्यतः) (यः) (गाः) किरणान् (उदाजत्) ऊर्ध्वमधो गमयति (सः) (दिवे) (वि) (च) (अभजत्) भजेत् (महीव) यथा पूज्या महती (रीतिः) श्रेष्ठा नीतिः (शवसा) बलेन (असरत्) सरेत् प्राप्नुयात् (पृथक्) ॥१४॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। ये पुरुषार्थिनोऽध्यापकाः सुशिक्षां प्राप्य सत्योपरि प्रीतिमसत्ये क्रोधं ददति ते महतीं सुशीलतां प्राप्य यथेष्टं कार्यं प्राप्नुवन्ति ॥१४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे पुरुषार्थी अध्यापक सुशिक्षण घेऊन असत्यावर अप्रीती दर्शवून सत्यावर प्रीती करतात ते सद्वर्तनी बनून इष्ट कार्य करतात. ॥ १४ ॥