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उ॒त वा॒ यो नो॑ म॒र्चया॒दना॑गसोऽराती॒वा मर्तः॑ सानु॒को वृकः॑। बृह॑स्पते॒ अप॒ तं व॑र्तया प॒थः सु॒गं नो॑ अ॒स्यै दे॒ववी॑तये कृधि॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uta vā yo no marcayād anāgaso rātīvā martaḥ sānuko vṛkaḥ | bṛhaspate apa taṁ vartayā pathaḥ sugaṁ no asyai devavītaye kṛdhi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒त। वा॒। यः। नः॒। म॒र्चया॑त्। अना॑गसः। अ॒रा॒ती॒ऽवा। मर्तः॑। सा॒नु॒कः। वृकः॑। बृह॑स्पते। अप॑। तम्। व॒र्त॒य॒। प॒थः। सु॒ऽगम्। नः॒। अ॒स्यै। दे॒वऽवी॑तये। कृ॒धि॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:23» मन्त्र:7 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:30» मन्त्र:2 | मण्डल:2» अनुवाक:3» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (बृहस्पते) बड़े पाप वियोग करनेवाले (यः) जो (नः) हम लोगों को (अनागसः) अनपराधी (पथः) मार्ग से (मर्चयात्) जो सुमार्गयान उसमें प्राप्त करें (उतवा) अथवा जो (अरातीवा) शत्रुओं का अच्छे प्रकार सेवन करता (सानुकः) और अनुगामी के साथ वर्त्तमान (वृकः) चोर (मर्त्तः) मनुष्य हो (तम्) उसको उस मार्ग से (अप,वर्त्तय) दूर करो (नः) हमारी (अस्यै) इस (देववीतये) दिव्य गुणों में व्याप्ति के लिये (सुगम्) सुगम मार्ग (कृधि) करो ॥७॥
भावार्थभाषाः - हे परमेश्वर! जो हम लोगों को सुमार्ग से सुख को प्राप्त कराते, उनको पहुँचाइये और जो दुष्पथ को पहुँचाते हैं, उनको अलग कीजिये तथा कृपा से शुद्ध सरल धर्मयुक्त मार्ग को प्राप्त कीजिये ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे बृहस्पते यो नोऽनागसो पथो मर्चयादुत वा योऽराती वा सानुको वृको मर्त्तो भवेत्तं पथोऽपवर्त्तय नोऽस्यै देववीतये सुगं कृधि ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उत) अपि (वा) पक्षान्तरे (यः) जगदीश्वरो विद्वान् वा (नः) अस्मान् (मर्चयात्) सुमार्गे नयेत् (अनागसः) अनपराधिनः (अरातीवा) योऽरातीन्शत्रून् वनति संभजति (मर्त्तः) मनुष्यः (सानुकः) सानुगादिः (वृकः) स्तेनः (बृहस्पते) बृहतः पापाद्वियोजकः (अप) (तम्) (वर्त्तय) दूरीकुरु। अत्राऽन्येषामपीति दीर्घः (पथः) मार्गात् (सुगम्) सुष्ठु गच्छन्ति यस्मिन्मार्गे तम् (नः) अस्माकम् (अस्यै) प्रत्यक्षायै (देववीतये) देवेषु दिव्यगुणेषु व्याप्तये (कृधि) कुरु ॥७॥
भावार्थभाषाः - हे परमेश्वर! येऽस्मान् सुमार्गेण सुखं प्रापयन्ति तान् प्रापय। ये च दुष्पथं नयन्ति तान् वियोजय कृपया शुद्धं सरलं धर्म्यं मार्गञ्च प्रापय ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे परमेश्वरा! जे आम्हाला सुमार्गांनी सुख प्राप्त करून देतात त्यांना सुख दे. जे दुष्पथाकडे नेतात त्यांना पृथक कर व कृपा करून शुद्ध-सरळ, धर्मयुक्त मार्ग प्राप्त करून दे. ॥ ७ ॥