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स नो॒ युवेन्द्रो॑ जो॒हूत्रः॒ सखा॑ शि॒वो न॒राम॑स्तु पा॒ता। यः शंस॑न्तं॒ यः श॑शमा॒नमू॒ती पच॑न्तं च स्तु॒वन्तं॑ च प्र॒णेष॑त्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa no yuvendro johūtraḥ sakhā śivo narām astu pātā | yaḥ śaṁsantaṁ yaḥ śaśamānam ūtī pacantaṁ ca stuvantaṁ ca praṇeṣat ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। नः॒। युवा॑। इन्द्रः॑। जो॒हूत्रः॑। सखा॑। शि॒वः। न॒राम्। अ॒स्तु॒। पा॒ता। यः। शंस॑न्तम्। यः। श॒श॒मा॒नम्। ऊ॒ती। पच॑न्तम्। च॒। स्तु॒वन्त॑म्। च॒। प्र॒ऽनेष॑त्॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:20» मन्त्र:3 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:25» मन्त्र:3 | मण्डल:2» अनुवाक:2» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब विद्वान् और ईश्वर के विषय को इस मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो (ऊती) रक्षा से (शंसन्तम्) प्रशंसा करते हुए को (यः) जो (शशमानम्) अन्याय को उल्लङ्घन करनेवालों को (पचन्तम्) पाक करते हुए को (स्तुवन्तम्,च) और स्तुति करते हुए को (प्रणेषत्) उत्तम न्याय को प्राप्त करावे और आप न्याय को प्राप्त होवे (सः) वह (युवा) सुखों से संयुक्त और दुःखों से वियुक्त करनेवाला (जोहूत्रः) निरन्तर दाता (शिवः) मङ्गलकारी (सखा) सबका मित्र (इन्द्रः) और विद्या वा ऐश्वर्य का देनेवाला विद्वान् वा ईश्वर (नः) हम लोगों का और (नराम्) सब मनुष्यों का (च) भी (पाता) रक्षक (अस्तु) हो ॥३॥
भावार्थभाषाः - जो परमेश्वर और आप्त जन सबकी रक्षा करनेवाले हैं, वे सबके मित्र और मङ्गल करनेवाले हैं ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्वदीश्वरविषयमाह।

अन्वय:

य ऊती शंसन्तं यः शशमानं पचन्तं स्तुवन्तं च प्रणेषत्स युवा जोहूत्रः शिवः सखेन्द्रो नो नरा च पाताऽस्तु ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) (नः) अस्माकम् (युवा) सुखैः संयोजको दुःखैर्वियोजकश्च (इन्द्रः) विद्यैश्वर्यप्रदः (जोहूत्रः) भृशं दाता (सखा) सुहृत् (शिवः) मङ्गलकारी (नराम्) मनुष्याणाम् (अस्तु) (पाता) रक्षकः (यः) (शंसन्तम्) प्रशंसन्तम् (यः) (शशमानम्) अन्यायमुल्लङ्घमानम् (ऊती) ऊत्या रक्षया (पचन्तम्) पाकं कुर्वन्तम् (च) (स्तुवन्तम्) स्तुवन्तम् (च) (प्रणेषत्) प्रकृष्टं नयं प्राप्नुयात् प्रापयेद्वा ॥३॥
भावार्थभाषाः - यौ परमेश्वराप्तौ सर्वेषां रक्षकौ स्तस्तौ सर्वेषां सुहृदौ मङ्गलकारिणौ स्तः ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - परमेश्वर व आप्त लोक सर्वांचे रक्षण करतात. ते सर्वांचे मित्र व मंगल करणारे असतात. ॥ ३ ॥