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व॒यं ते॒ वय॑ इन्द्र वि॒द्धि षु णः॒ प्र भ॑रामहे वाज॒युर्न रथ॑म्। वि॒प॒न्यवो॒ दीध्य॑तो मनी॒षा सु॒म्नमिय॑क्षन्त॒स्त्वाव॑तो॒ नॄन्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vayaṁ te vaya indra viddhi ṣu ṇaḥ pra bharāmahe vājayur na ratham | vipanyavo dīdhyato manīṣā sumnam iyakṣantas tvāvato nṝn ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

व॒यम्। ते॒। वयः॑। इ॒न्द्र॒। वि॒द्धि। सु। नः॒। प्र। भ॒रा॒म॒हे॒। वा॒ज॒ऽयुः। न। रथ॑म्। वि॒प॒न्यवः॑। दीध्य॑तः। म॒नी॒षा। सु॒म्नम्। इय॑क्षन्तः। त्वाऽव॑तः। नॄन्॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:20» मन्त्र:1 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:25» मन्त्र:1 | मण्डल:2» अनुवाक:2» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब नव चावाले बीसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में इन्द्र शब्द से विद्वान् के गुणों का उपदेश किया है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वयः) मनोहर (इन्द्र) विद्वान् जो (विपन्यवः) विशेषकर स्तुति के व्यवहारों को करनेवाले (त्वावतः) आपके सदृश (नॄन्) मनुष्यों का (इयक्षन्तः) सत्कार करते हुए (दीध्यतः) देदीप्यमान (वयम्) हम लोग (मनीषा) बुद्धि से (ते) आपके (रथम्) विमानादि यान को (वाजयुः) वेग की कामना करनेवाला (न) जैसे वैसे (सुम्नम्) सुख को (सु,प्र,भरामहे) अच्छे प्रकार पुष्ट करें उन (नः) हम लोगों को आप (विद्धि) जानें ॥१॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो सत्कार करने योग्यों को सत्कार करते और सत्य व्यवहार से वर्त्ताव वर्त्तते हैं, वे समस्त सुख के धारण करने को योग्य होते हैं ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथेन्द्रशब्देन विद्वद्गुणानाह।

अन्वय:

हे वय इन्द्र ये विपन्यवस्त्वावतो नॄनियक्षन्तो दीध्यतो वयं मनीषा ते रथं वाजयुर्न सुम्नं सुप्रभरामहे तान्नोऽस्माँस्त्वं विद्धि ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वयम्) (ते) तव (वयः) कमनीय (इन्द्र) विद्वन् (विद्धि) जानीहि (सु) सुष्ठु (नः) अस्मान् (प्र) (भरामहे) पुष्येम (वाजयुः) यो वाजं वेगं कामयते सः (न) इव (रथम्) विमानादियानम् (विपन्यवः) विशेषेण स्तुत्या व्यवहर्त्तारः (दीध्यतः) देदीप्यमानाः (मनीषा) प्रज्ञया (सुम्नम्) सुखम् (इयक्षन्तः) सत्कुर्वन्तः (त्वावतः) त्वत्सदृशान् (नॄन्) ॥१॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। ये सत्कर्त्तव्यान् पूजयन्ति सत्येन व्यवहरन्ति ते सर्वं सुखं धर्त्तुमर्हन्ति ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात इंद्र, विद्वान, ईश्वर, सभापती इत्यादींच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे सत्कार करण्यायोग्य असणाऱ्यांचा सत्कार करतात व सत्य व्यवहाराने वागतात ते संपूर्ण सुख धारण करतात. ॥ १ ॥