व॒यं ते॒ वय॑ इन्द्र वि॒द्धि षु णः॒ प्र भ॑रामहे वाज॒युर्न रथ॑म्। वि॒प॒न्यवो॒ दीध्य॑तो मनी॒षा सु॒म्नमिय॑क्षन्त॒स्त्वाव॑तो॒ नॄन्॥
vayaṁ te vaya indra viddhi ṣu ṇaḥ pra bharāmahe vājayur na ratham | vipanyavo dīdhyato manīṣā sumnam iyakṣantas tvāvato nṝn ||
व॒यम्। ते॒। वयः॑। इ॒न्द्र॒। वि॒द्धि। सु। नः॒। प्र। भ॒रा॒म॒हे॒। वा॒ज॒ऽयुः। न। रथ॑म्। वि॒प॒न्यवः॑। दीध्य॑तः। म॒नी॒षा। सु॒म्नम्। इय॑क्षन्तः। त्वाऽव॑तः। नॄन्॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब नव चावाले बीसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में इन्द्र शब्द से विद्वान् के गुणों का उपदेश किया है।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथेन्द्रशब्देन विद्वद्गुणानाह।
हे वय इन्द्र ये विपन्यवस्त्वावतो नॄनियक्षन्तो दीध्यतो वयं मनीषा ते रथं वाजयुर्न सुम्नं सुप्रभरामहे तान्नोऽस्माँस्त्वं विद्धि ॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात इंद्र, विद्वान, ईश्वर, सभापती इत्यादींच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.