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स सु॑न्व॒त इन्द्रः॒ सूर्य॒मा दे॒वो रि॑ण॒ङ्मर्त्या॑य स्त॒वान्। आ यद्र॒यिं गु॒हद॑वद्यमस्मै॒ भर॒दंशं॒ नैत॑शो दश॒स्यन्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa sunvata indraḥ sūryam ā devo riṇaṅ martyāya stavān | ā yad rayiṁ guhadavadyam asmai bharad aṁśaṁ naitaśo daśasyan ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। सु॒न्व॒ते। इन्द्रः॑। सूर्य॑म्। आ। दे॒वः। रि॒ण॒क्। मर्त्या॑य। स्त॒वान्। आ। यत्। र॒यिम्। गु॒हत्ऽअ॑वद्यम्। अ॒स्मै॒। भर॑त्। अंश॑म्। न। एत॑शः। द॒श॒स्यन्॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:19» मन्त्र:5 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:23» मन्त्र:5 | मण्डल:2» अनुवाक:2» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब बिजुली के विषय को अगले मन्त्र में कहा गया है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो (यत्) जो (देवः) देदीप्यमान (इन्द्रः) विजुली (सुन्वते) पदार्थों का सार निकालनेवाले मनुष्य के लिये (सूर्य्यम्) सवितृ मण्डल को और (मर्त्याय) साधारण मनुष्य के लिये (स्तवान्) स्तुतियों को (न, आ,रिणक्) नहीं छोड़ती और (गुहदवद्यम्) ढंपे हुए निन्द्य (रयिम्) धन को (अस्मै) इस मनुष्य के लिये (आ, भरत) आभूषित कराती और (अंशम्) प्राप्त भाग को (दशस्यन्) नष्ट करती हुई (एतशः) प्राप्त नहीं होती (सः) वह बिजुली आप लोगों को उपयोग में लानी योग्य है ॥५॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य किसी की उन्नति के नाश की नहीं इच्छा करते किन्तु सबके ऐश्वर्य को बढ़वाते हैं, वे सूर्य के समान उपकार करनेवाले होते हैं ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्युद्विषयमाह।

अन्वय:

हे मनुष्या यद् यो देव इन्द्रः सुन्वते सूर्य्यं मर्त्याय स्तवान्नारिणग् गुहदवद्यं रयिमस्मा आ भरत्। अंशं दशस्यन्नेतशो न भवति स युष्माभिरुपयोक्तव्यः ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) (सुन्वते) अभिषवं कुर्वते (इन्द्रः) विद्युत् (सूर्य्यम्) सवितारम् स्तुतिः यः श्रियम् आच्छादितनिन्द्यम् भरति प्राप्तम् निषेधे प्राप्नुवन् उपक्षयन् (आ) (देवः) देदीप्यमानः (रिणक्) रिणक्ति (मर्त्याय) (स्तवान्) स्तुतिः (आ) (यत्) यः (रयिम्) श्रियम् (गुहदवद्यम्) आच्छादितनिन्द्यम् (अस्मै) (भरत्) भरति (अंशम्) प्राप्तम् (न) निषेधे (एतशः) प्राप्नुवन् (दशस्यन्) उपक्षयन् ॥५॥
भावार्थभाषाः - ये कस्याप्युन्नतेः क्षयं नेच्छन्ति सर्वस्यैश्वर्यं वर्द्धयन्ति ते सूर्यवदुपकारका भवन्ति ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे कुणाच्याही नाशाची कामना करीत नाहीत तर सर्वांचे ऐश्वर्य वाढवितात ती सूर्याप्रमाणे उपकारी असतात. ॥ ५ ॥