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स माहि॑न॒ इन्द्रो॒ अर्णो॑ अ॒पां प्रैर॑यदहि॒हाच्छा॑ समु॒द्रम्। अज॑नय॒त्सूर्यं॑ वि॒दद्गा अ॒क्तुनाह्नां॑ व॒युना॑नि साधत्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa māhina indro arṇo apām prairayad ahihācchā samudram | ajanayat sūryaṁ vidad gā aktunāhnāṁ vayunāni sādhat ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। माहि॑नः। इन्द्रः॑। अर्णः॑। अ॒पाम्। प्र। ऐ॒र॒य॒त्। अ॒हि॒ऽहा। अच्छ॑। स॒मु॒द्रम्। अज॑नयत्। सूर्य॑म्। वि॒दत्। गाः। अ॒क्तुना॑। अह्ना॑म्। व॒युना॑नि। सा॒ध॒त्॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:19» मन्त्र:3 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:23» मन्त्र:3 | मण्डल:2» अनुवाक:2» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर सूर्य विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो जैसे (सः) वह (माहिनः) बड़ा (अहिहा) मेघ का हननेवाला (इन्द्रः) बिजली रूप अग्नि (अपाम्) अन्तरिक्ष के बीच (अर्णः) जलको (अच्छ) (प्रैरयत्) यथाक्रम से प्रेरणा देता है (समुद्रम्) समुद्र को और (सूर्यम्) सूर्यमण्डल को (अजनयत्) उत्पन्न करता है (अक्तुना) रात्रि के साथ (अह्नाम्) दिनों के सम्बन्ध करनेवाली (गाः) पृथिवियों को (विदत्) प्राप्त होता और (वयुनानि) उत्तम ज्ञानों को (साधत्) सिद्ध करता वैसे तुम लोग भी आचरण करो ॥३॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य बिजली के समान वेग और आकर्षणयुक्त शत्रुओं के हनने और विद्यादि शुभगुणों को प्रचार करनेवाले हैं, अन्याय और अन्धकार का विनाश करनेवाले संसार का सुख सिद्ध करते हैं, वे सर्वत्र पूज्य होते हैं ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः सूर्यविषयमाह।

अन्वय:

हे मनुष्या यथा स माहिनाऽहिहेन्द्रोऽपामर्णोऽच्छ प्रैरयत्। समुद्रं सूर्यमजनयदक्तुनाऽह्नां गा विदद्वयुनानि साधत्तथा यूयमप्याचरत ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) (माहिनः) (महान्) (इन्द्रः) विद्युत् (अर्णः) जलम् (अपाम्) अन्तरिक्षस्य मध्ये (प्र) (ऐरयत्) (अहिहा) मेघस्य हन्ता (अच्छ) यथाक्रमम्। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः (समुद्रम्) सागरम् (अजनयत्) जनयति (सूर्यम्) सवितृमण्डलम् (विदत्) प्राप्नोति (गाः) पृथिवीः (अक्तुना) रात्र्या (अह्नाम्) दिनानाम् (वयुनानि) प्रज्ञानानि (साधत्) साध्नुयात् ॥३॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या विद्युद्वद्वेगाऽऽकर्षणयुक्ताः शत्रुहन्तारो विद्यादिशुभगुणप्रचारका अन्यायाऽन्धकारनाशका जगतः सुखं साध्नुवन्ति ते सर्वत्र पूज्यन्ते ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे विद्युतप्रमाणे वेग व आकर्षणयुक्त असतात, शत्रूंचे हनन व विद्या इत्यादी शुभ गुणांचा प्रसार करतात, अन्याय अंधकाराचा नाश करतात व संसाराचे सुख सिद्ध करतात, ती सर्वत्र पूज्य ठरतात. ॥ ३ ॥