वांछित मन्त्र चुनें

न म॒ इन्द्रे॑ण स॒ख्यं वि यो॑षद॒स्मभ्य॑मस्य॒ दक्षि॑णा दुहीत। उप॒ ज्येष्ठे॒ वरू॑थे॒ गभ॑स्तौ प्रा॒येप्रा॑ये जिगी॒वांसः॑ स्याम॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

na ma indreṇa sakhyaṁ vi yoṣad asmabhyam asya dakṣiṇā duhīta | upa jyeṣṭhe varūthe gabhastau prāye-prāye jigīvāṁsaḥ syāma ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

न। मे॒। इन्द्रे॑ण। स॒ख्यम्। वि। यो॒ष॒त्। अ॒स्मभ्य॑म्। अ॒स्य॒। दक्षि॑णा। दु॒ही॒त॒। उप॑। ज्येष्ठे॑। वरू॑थे। गभ॑स्तौ। प्रा॒येऽप्रा॑ये। जि॒गी॒वांसः॑। स्या॒म॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:18» मन्त्र:8 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:22» मन्त्र:3 | मण्डल:2» अनुवाक:2» मन्त्र:8


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब ईश्वर और विद्वान् के विषय को अगले मन्त्र में कहा गया है।

पदार्थान्वयभाषाः - जिस (अस्य) इस (दक्षिणा) विद्या और सुन्दर शिक्षा का दान (अस्मभ्यम्) हम लोगों के लिये (ज्येष्ठे) प्रशंसा योग्य (वरूथे) अतीव उत्तम (गभस्तौ) विज्ञान प्रकाश में (प्रायेप्राये) और मनोहर-मनोहर परमेश्वर वा आप्त विद्वान् में (उप,दुहीत) परिपूर्ण होती हो उस (इन्द्रेण) उक्त परमेश्वर वा आप्त विद्वान् से मेरी (सख्यम्) मित्रता जैसे (न,वियोषत्) न विनष्ट हो वैसे हो जिससे हम लोग (जिगीवांसः) विजयशील (स्याम) हों ॥८॥
भावार्थभाषाः - जो सत्य प्रेम से जगदीश्वर वा आप्त विद्वानों को प्राप्त होने और सेवन करने की कामना करते हैं और उसके विरोध की इच्छा नहीं चाहते हैं, वे विद्वान् होकर ज्येष्ठ होते हैं अर्थात् अति प्रशंसित होते हैं ॥८॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ ईश्वरविद्वद्विषयमाह।

अन्वय:

यस्यास्य दक्षिणाऽस्मभ्यं ज्येष्ठे वरूथे गभस्तौ प्रायेप्राये उपदुहीत तेनेन्द्रेण मम सख्यं यथा न वियोषत्तथा भवतु येन वयं जिगीवांसः स्याम ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (न) निषेधे (मे) मम (इन्द्रेण) परमेश्वरेण तेन विदुषा वा (सख्यम्) मित्रस्य भावः (वि) (योषत्) विनश्येत् (अस्मभ्यम्) (अस्य) (दक्षिणा) विद्यासुशिक्षादानम् (दुहीत) परिपूर्णा स्यात् (उप) (ज्येष्ठे) प्रशस्ये (वरूथे) अत्युत्तमे (गभस्तौ) विज्ञानप्रकाशे (प्रायेप्राये) कमनीये कमनीये (जिगीवांसः) जेतुं शीलाः (स्याम) भवेम ॥८॥
भावार्थभाषाः - ये सत्यप्रेम्णा जगदीश्वरमाप्तान् विदुषो वा प्राप्तुं सेवितुञ्च कामयन्ते तद्विरोधं नेच्छन्ति ते विद्वांसो भूत्वा ज्येष्ठा जायन्ते ॥८॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - भावार्थ -जे खऱ्या प्रेमाने जगदीश्वर किंवा आप्त विद्वानांना प्राप्त करण्याची किंवा स्वीकार करण्याची इच्छा बाळगतात व विरोधाची इच्छा बाळगत नाहीत ते विद्वान बनून ज्येष्ठ होतात अर्थात् अति प्रशंसित होतात. ॥ ८ ॥