वांछित मन्त्र चुनें

मम॒ ब्रह्मे॑न्द्र या॒ह्यच्छा॒ विश्वा॒ हरी॑ धु॒रि धि॑ष्वा॒ रथ॑स्य। पु॒रु॒त्रा हि वि॒हव्यो॑ ब॒भूथा॒स्मिञ्छू॑र॒ सव॑ने मादयस्व॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mama brahmendra yāhy acchā viśvā harī dhuri dhiṣvā rathasya | purutrā hi vihavyo babhūthāsmiñ chūra savane mādayasva ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मम॑। ब्रह्म॑। इ॒न्द्र॒। या॒हि॒। अच्छ॑। विश्वा॑। हरी॒ इति॑। धु॒रि। धि॒ष्व॒। रथ॑स्य। पु॒रु॒ऽत्रा। हि। वि॒ऽहव्यः॑। ब॒भूथ॑। अ॒स्मिन्। शू॒र॒। सव॑ने। मा॒द॒य॒स्व॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:18» मन्त्र:7 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:22» मन्त्र:2 | मण्डल:2» अनुवाक:2» मन्त्र:7


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब पदार्थों के विषय में अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) धन की इच्छा करनेवाले आप (मम) मेरे (ब्रह्म) धनको (याहि) प्राप्त होओ जो (रथस्य) यानसमूह के (धुरि) धारण करनेवाले अङ्ग में अर्थात् धुरी में (हरी) धारण और आकर्षण खींचने का गुण जिनमें है उन दोनों से यान रथादि को (धिष्व) धारण करो उससे (पुरुत्रा) बहुत (विश्वा) समस्त धनों को (अच्छ, याहि) उत्तम गति से आओ, प्राप्त होओ हे (शूर) निर्भय (अस्मिन्) इस (सवने) ऐश्वर्य के निमित्त (विहव्यः) विविध प्रकार ग्रहण करने योग्य आप (बभूथ) होओ और हम लोगों को (हि) ही (मादयस्व) आनन्दित कीजिये ॥७॥
भावार्थभाषाः - सब सज्जनों को सबके प्रति ऐसा कहना चाहिये कि जो हमारे पदार्थ हैं, वे आपके सुख के लिये हों, जैसे तुम लोग हम लोगों को आनन्दित करो, वैसे हम लोग तुमको आनन्दित करें ॥७॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ पदार्थविषयमाह।

अन्वय:

हे इन्द्र त्वं मम ब्रह्म याहि यो रथस्य धुरि हरी स्तस्ताभ्यां यानं धिष्व तेन पुरुत्रा विश्वा धनान्यच्छायाहि हे शूर अस्मिन् सवने विहव्यस्त्वं बभूथ अस्मान् हि मादयस्व ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मम) (ब्रह्म) धनम् (इन्द्र) धनमिच्छुक (याहि) प्राप्नुहि (अच्छ) सग्यग्गत्या। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः (विश्वा) सर्वाणि (हरी) धारणाकर्षणौ (धुरि) धारकेऽवयवे (धिष्व)। द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः (रथस्य) यानसमूहस्य (पुरुत्रा) पुरूणि बहूनि (हि) खलु (विहव्यः) विहोतुमर्हः (बभूथ) भव (अस्मिन्) (शूर) निर्भय (सवने) ऐश्वर्ये (मादयस्व) आनन्दयस्व ॥७॥
भावार्थभाषाः - सर्वैः सज्जनैः सर्वान् प्रत्येवं वाच्यं येऽस्माकं पदार्थास्सन्ति ते युष्मत्सुखाय सन्तु यथा यूयमस्मानानन्दयध्वं तथा वयं युष्मानानन्दयेम ॥७॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - सर्व सज्जनांनी सर्वांना असे म्हटले पाहिजे की जे आमचे पदार्थ आहेत ते तुमच्या सुखासाठी आहेत. जसे तुम्ही लोक आम्हाला आनंदित करता तसे आम्हीही तुम्हाला आनंदित करावे. ॥ ७ ॥