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आशी॒त्या न॑व॒त्या या॑ह्य॒र्वाङा श॒तेन॒ हरि॑भिरु॒ह्यमा॑नः। अ॒यं हि ते॑ शु॒नहो॑त्रेषु॒ सोम॒ इन्द्र॑ त्वा॒या परि॑षिक्तो॒ मदा॑य॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

āśītyā navatyā yāhy arvāṅ ā śatena haribhir uhyamānaḥ | ayaṁ hi te śunahotreṣu soma indra tvāyā pariṣikto madāya ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। अ॒शी॒त्या। न॒व॒त्या। या॒हि॒। अ॒र्वाङ्। आ। श॒तेन॑। हरि॑ऽभिः। उ॒ह्यमा॑नः। अ॒यम्। हि। ते॒। शु॒नऽहो॑त्रेषु। सोमः॑। इन्द्र॑। त्वा॒ऽया। परि॑ऽसिक्तः। मदा॑य॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:18» मन्त्र:6 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:22» मन्त्र:1 | मण्डल:2» अनुवाक:2» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) दुःख विदीर्ण करनेवाले (ते) आपके (त्वाया) आपकी कामना से जो (अयम्) यह (शुनहोत्रेषु) सुख देनेवाले कलाघरों में (परिषिक्तः) सब ओर से उत्तम पदार्थों से सींचा हुआ है (हि) उसीको आप (अर्वाङ्) नीचे जाते हुए (अशीत्या) अस्सी (नवत्या) नब्बे (हरिभिः) हरणशील पदार्थों से युक्त यानसे (उह्यमानः) चलाये जाते हुए (आ) आओ (शतेन) सौ पदार्थों से युक्त रथसे (मदाय) आनन्द के लिये (आ,याहि) आओ ॥६॥
भावार्थभाषाः - जो ओषधियों के सेवन और सुन्दर पथ्य से नीरोगता से आनन्दित होते हुए सौ प्रकार के यानों और यन्त्रों को बनाते हैं, वे नीचे-ऊपर जा सकते हैं ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे इन्द्र ते तव त्वाया योऽयं शुनहोत्रेषु मदाय सोमः परिसिक्तोऽस्ति तं हि त्वमर्वाङ् सन्नशीत्या नवत्या हरिभिर्युक्तेन यानेनोह्यमानो याहि शतेन मदाय चायाहि ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) (अशीत्या) (नवत्या) (याहि) (अर्वाङ्) (आ) (शतेन) (हरिभिः) (उह्यमानः) गम्यमानः (अयम्) (हि) (ते) तव (शुनहोत्रेषु) शुनं सुखं जुह्वति ददति तेषु शुनमिति सुखनाम निघं० ३। ६। (सोमः) ओषधिगणः (इन्द्र) दुःखविदारक (त्वाया) त्वत् कामनया (परिषिक्तः) परितः सर्वतोऽन्यैरुत्तमैर्द्रव्यैः सिक्तः (मदाय) आनन्दाय ॥६॥
भावार्थभाषाः - य ओषधीसेवनसुपथ्याभ्यां रोगराहित्येनानन्दिताः सन्तः शतविधानि यानानि यन्त्राणि च निर्मिमते त अध ऊर्ध्वं गन्तुं शक्नुवन्ति ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे औषधांच्या सेवनाने व सुंदर पथ्याने निरोगी राहून आनंदित होतात व शंभर प्रकारच्या यानांना व यंत्रांना तयार करतात ते खाली-वर जाऊ शकतात. ॥ ६ ॥