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अ॒मा॒जूरि॑व पि॒त्रोः सचा॑ स॒ती स॑मा॒नादा सद॑स॒स्त्वामि॑ये॒ भग॑म्। कृ॒धि प्र॑के॒तमुप॑ मा॒स्या भ॑र द॒द्धि भा॒गं त॒न्वो॒३॒॑ येन॑ मा॒महः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

amājūr iva pitroḥ sacā satī samānād ā sadasas tvām iye bhagam | kṛdhi praketam upa māsy ā bhara daddhi bhāgaṁ tanvo yena māmahaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒मा॒जूःऽइ॑व। पि॒त्रोः। सचा॑। स॒ती। स॒मा॒नात्। आ। सद॑सः। त्वाम्। इ॒ये॒। भग॑म्। कृ॒धि। प्र॒ऽके॒तम्। उप॑। मा॒सि॒। आ। भ॒र॒। द॒द्धि। भा॒गम्। त॒न्वः॑। येन॑। म॒महः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:17» मन्त्र:7 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:20» मन्त्र:2 | मण्डल:2» अनुवाक:2» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब विदुषी के विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे कन्ये (सती) वर्त्तमान तू (सचा) सम्बन्ध से (अमाजूरिव) जो घर में बुड्ढा होता उसके समान (पित्रोः) माता पिता के (समानात्) समान भाव से (सदसः) जिसमें पहुँचते हैं उस स्थान से जिस (त्वा) तुझे मैं (इये) प्राप्त होऊँ वह तू (प्रकेतम्) उत्कर्ष विज्ञान को और (भागम्) ऐश्वर्य को (कृधि) सिद्ध कर तथा (मासि) प्रति महीने में (उपाभर) उत्तम प्राप्त हुए आभूषणों को पहिनकर (भागम्) सेवन करने योग्य पदार्थ (दद्धि) माँगो (येन) जिससे (मामहः) सत्कार करने योग्य पुत्रादिकों को वा प्रशंसा करने योग्य पदार्थों को प्राप्त हो उस व्यवहार से (तन्वः) शरीर के भाग को माँगो ॥७॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो कन्या विद्या को पढ़कर गृहाश्रम को प्राप्त हों, वे सत्कार करने योग्यों का सत्कार कर और तिरस्कार करने योग्यों का तिरस्कार कर पुरुषार्थ से ऐश्वर्य को बढ़ावें ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विदुषीविषयमाह।

अन्वय:

हे कन्ये सती त्वं सचा माजूरिव पित्रोः समानात्सदसो यां त्वामहमिये सा त्वं प्रकेतं भगं कृधि मास्युपाभर भागं दद्धि येन मामहः प्राप्नुयास्तेन तन्वो भागं याचस्व ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अमाजूरिव) योऽमा गृहे जूर्यति तद्वत् (पित्रोः) (सचा) समवायेन (सती) वर्त्तमाना (समानात्) (आ) समन्तात् (सदसः) सीदन्ति यस्मिँस्तस्माद्गृहात् (त्वाम्) (इये) प्राप्नुयाम्। अत्र व्यत्ययेनात्मनेपदम्। लडर्थे लिट् च। (भगम्) ऐश्वर्यम् (कृधि) कुरु (प्रकेतम्) प्रकृष्टं विज्ञानम् (उप) (मासि) मासे (आ) (भर) (दद्धि) याचस्व। दद्धीति याच्ञाकर्मा० निघं० ३। १९। (भागम्) भजनीयम् (तन्वः) शरीरस्य (येन) (मामहः) पूज्यान् ॥७॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। याः कन्या विद्यामधीत्य गृहाश्रमं प्राप्नुयुस्ताः पूज्यान् सत्कृत्याऽपूज्यान् तिरस्कृत्य पुरुषार्थेनैश्वर्यं वर्द्धयेयुः ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. ज्या कन्या विद्या शिकून गृहस्थाश्रम स्वीकारतात त्यांनी पूजनीय लोकांचा सत्कार करावा, अपूजनीय लोकांचा तिरस्कार करावा व पुरुषार्थाने ऐश्वर्य वाढवावे. ॥ ७ ॥