तद॑स्मै॒ नव्य॑मङ्गिर॒स्वद॑र्चत॒ शुष्मा॒ यद॑स्य प्र॒त्नथो॒दीर॑ते। विश्वा॒ यद्गो॒त्रा सह॑सा॒ परी॑वृता॒ मदे॒ सोम॑स्य दृंहि॒तान्यैर॑यत्॥
tad asmai navyam aṅgirasvad arcata śuṣmā yad asya pratnathodīrate | viśvā yad gotrā sahasā parīvṛtā made somasya dṛṁhitāny airayat ||
तत्। अ॒स्मै॒। नव्य॑म्। अ॒ङ्गि॒र॒स्वत्। अ॒र्च॒त॒। शुष्माः॑। यत्। अ॒स्य॒। प्र॒त्नऽथा॑। उ॒त्ऽईर॑ते। विश्वा॑। यत्। गो॒त्रा। सह॑सा। परि॑ऽवृता। मदे॑। सोम॑स्य। दृं॒हि॒तानि॑। ऐर॑यत्॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब नव चावाले सत्रहवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में सूर्य के गुणों का उपदेश करते हैं।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ सूर्यगुणानाह।
हे विद्वांसोऽस्य सोमस्य यद्यानि प्रत्नथा शुष्मा विश्वा गोत्रा परीवृता सहसा दृंहितान्युदीरते तन्नव्यमस्मा अङ्गिरस्वद्यूयमर्चत यन्मदे प्रभवति तद्य ऐरयत्तं स्वरूपतो विजानीत ॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.