वृष्णः॒ कोशः॑ पवते॒ मध्व॑ ऊ॒र्मिर्वृ॑ष॒भान्ना॑य वृष॒भाय॒ पात॑वे। वृष॑णाध्व॒र्यू वृ॑ष॒भासो॒ अद्र॑यो॒ वृष॑णं॒ सोमं॑ वृष॒भाय॑ सुष्वति॥
vṛṣṇaḥ kośaḥ pavate madhva ūrmir vṛṣabhānnāya vṛṣabhāya pātave | vṛṣaṇādhvaryū vṛṣabhāso adrayo vṛṣaṇaṁ somaṁ vṛṣabhāya suṣvati ||
वृष्णः॒। कोशः॑। प॒व॒ते॒। मध्वः॑। ऊ॒र्मिः। वृ॒ष॒भऽअ॑न्नाय। वृ॒ष॒भाय॑। पात॑वे। वृष॑णा। अ॒ध्व॒र्यू इति॑। वृ॒ष॒भासः॑। अद्र॑यः। वृष॑णम्। सोम॑म्। वृ॒ष॒भाय॑। सु॒स्व॒ति॒॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब सूर्य विषय को अगले मन्त्र में कहा गया है।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ सूर्यविषयमाह।
हे मनुष्या यथा मध्व ऊर्मिर्वृष्णः कोशो वृषभान्नाय वृषभाय पवते यथा पातवे वृषभासोऽद्रयो वृषभाय वृषणं सोमं वृषणाध्वर्यू च सुष्वति तथा यूयमपि भवत ॥५॥