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वृष्णः॒ कोशः॑ पवते॒ मध्व॑ ऊ॒र्मिर्वृ॑ष॒भान्ना॑य वृष॒भाय॒ पात॑वे। वृष॑णाध्व॒र्यू वृ॑ष॒भासो॒ अद्र॑यो॒ वृष॑णं॒ सोमं॑ वृष॒भाय॑ सुष्वति॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vṛṣṇaḥ kośaḥ pavate madhva ūrmir vṛṣabhānnāya vṛṣabhāya pātave | vṛṣaṇādhvaryū vṛṣabhāso adrayo vṛṣaṇaṁ somaṁ vṛṣabhāya suṣvati ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वृष्णः॒। कोशः॑। प॒व॒ते॒। मध्वः॑। ऊ॒र्मिः। वृ॒ष॒भऽअ॑न्नाय। वृ॒ष॒भाय॑। पात॑वे। वृष॑णा। अ॒ध्व॒र्यू इति॑। वृ॒ष॒भासः॑। अद्र॑यः। वृष॑णम्। सोम॑म्। वृ॒ष॒भाय॑। सु॒स्व॒ति॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:16» मन्त्र:5 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:17» मन्त्र:5 | मण्डल:2» अनुवाक:2» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब सूर्य विषय को अगले मन्त्र में कहा गया है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे (मध्वः) शहद वा मधुर रसकी (ऊर्मिः) तरंग वा (वृष्णः) जल वर्षानेवाले सूर्य से (कोशः) मेघ (वृषभान्नाय) श्रेष्ठ जिससे अन्न हो उस (वृषभाय) श्रेष्ठ के लिये (पवते) प्राप्त होता वा जैसे (पातवे) पीने के लिये (वृषभासः) वर्षनेवाले (अद्रयः) मेघ (वृषभाय) दुष्टों की शक्ति को बाँधनेवाले के लिये (वृषणम्) बलकारक (सोमम्) सोमलतादि ओषधि रस को और (वृषणा) श्रेष्ठ (अध्वर्यू) अपने को अहिंसा की इच्छा करनेवाले का (सुष्वति) सार निकालते हैं, वैसे तुम भी निकालनेवाले हूजिये ॥५॥
भावार्थभाषाः - जैसे मेघ सूर्य से उत्पन्न होकर पुष्कल अन्न का निमित्त होता और सब प्राणियों को तृप्त करता है, वैसे विद्वानों को भी होना चाहिये ॥०५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ सूर्यविषयमाह।

अन्वय:

हे मनुष्या यथा मध्व ऊर्मिर्वृष्णः कोशो वृषभान्नाय वृषभाय पवते यथा पातवे वृषभासोऽद्रयो वृषभाय वृषणं सोमं वृषणाध्वर्यू च सुष्वति तथा यूयमपि भवत ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वृष्णः) वर्षकात् सूर्य्यात् (कोशः) मेघः (पवते) प्राप्नोति। पवत इति गतिकर्मा० निघं० २। १४। (मध्वः) मधोः (ऊर्मिः) तरङ्गः (वृषभान्नाय) वृषभमन्नं यस्मात्तस्मै (वृषभाय) श्रेष्ठाय (पातवे) पातुम् (वृषणा) वरौ (अध्वर्यू) आत्मनोऽध्वरमहिंसामिच्छू (वृषभासः) वर्षका (अद्रयः) मेघाः (वृषणम्) बलकरम् (सोमम्) सोमलताद्योषधिरसम् (वृषभाय) दुष्टशक्तिप्रतिबन्धकाय (सुष्वति) सुन्वन्ति। अत्र बहुलं छन्दसीति शपः श्लुरदभ्यस्तादिति झोऽदादेशः ॥५॥
भावार्थभाषाः - यथा मेघः सूर्यादुत्पद्य पुष्कलान्ननिमित्तो भवति सर्वान् प्राणिनः प्रीणाति तथा विद्वद्भिरपि भवितव्यम् ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसा मेघ सूर्यापासून उत्पन्न होऊन पुष्कळ अन्नाचे निमित्त बनतो व सर्व प्राण्यांना तृप्त करतो, तसे विद्वानांनी बनले पाहिजे. ॥ ५ ॥