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प्र वः॑ स॒तां ज्येष्ठ॑तमाय सुष्टु॒तिम॒ग्नावि॑व समिधा॒ने ह॒विर्भ॑रे। इन्द्र॑मजु॒र्यं ज॒रय॑न्तमुक्षि॒तं स॒नाद्युवा॑न॒मव॑से हवामहे॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pra vaḥ satāṁ jyeṣṭhatamāya suṣṭutim agnāv iva samidhāne havir bhare | indram ajuryaṁ jarayantam ukṣitaṁ sanād yuvānam avase havāmahe ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र। वः॒। स॒ताम्। ज्येष्ठ॑तमाय। सु॒ऽस्तु॒तिम्। अ॒ग्नौऽइ॑व। स॒म्ऽइ॒धा॒ने। ह॒विः। भ॒रे॒। इन्द्र॑म्। अ॒जु॒र्यम्। ज॒रय॑न्तम्। उ॒क्षि॒तम्। स॒नात्। युवा॑नम्। अव॑से। ह॒वा॒म॒हे॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:16» मन्त्र:1 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:17» मन्त्र:1 | मण्डल:2» अनुवाक:2» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब नव चावाले सोलहवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में बिजली के विषय को कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वानो ! हम लोग (सताम्) आप सज्जनों के (ज्येष्ठतमाय) अत्यन्त बढ़े हुए (अवसे) रक्षा आदि के लिये (हविः) हविष्य पदार्थ को (भरे) भरें धारण करें वा पुष्ट करें उस (समिधाने) अच्छे प्रकार प्रदीप्त (अग्नाविव) अग्नि में जैसे वैसे (सुष्टुतिम्) सुन्दर स्तुति को (हवामहे) स्वीकार करें और (सनात्) निरन्तर (युवानम्) दूसरे का भेद और (उक्षितम्) सेचन करनेवाले तथा (अजुर्यम्) पुष्ट (जरयन्तम्) औरों को जरावस्था प्राप्त करानेवाले (इन्द्रम्) विद्युत् रूप अग्नि को उत्तमता स्वीकार करें ॥१॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे अग्नि और विभाग आदि कर्मों का करनेवाला बिजली रूप अग्नि युक्ति के साथ संयुक्त किया हुआ बहुत ऐश्वर्य को उत्पन्न करता है, वैसे सत्पुरुषों की प्रशंसा सबकी श्रेष्ठता के लिये कल्पना की जाती है ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्युद्विषयमाह।

अन्वय:

हे विद्वांसो वयं सतां वो ज्येष्ठतमायावसे हविर्भरे समिधानेऽग्नाविव सुष्टुतिं हवामहे सनाद्युवानमुक्षितमजुर्यं जरयन्तमिन्द्रं प्रहवामहे ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्र) (वः) युष्माकम् (सताम्) सज्जनानाम् (ज्येष्ठतमाय) अतिशयेन वृद्धाय (सुष्टुतिम्) शोभनां स्तुतिम् (अग्नाविव) (समिधाने) सम्यक् प्रदीप्ते (हविः) (भरे) बिभृयात् (इन्द्रम्) विद्युत्तम् (अजुर्यम्) अजीर्णम् (जरयन्तम्) अन्याञ्जरां प्रापयन्तम् (उक्षितम्) सेवकम् (सनात्) निरन्तरम् (युवानम्) भेदकम् (अवसे) रक्षणाद्याय (हवामहे) स्वीकुर्मः ॥१॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यथाऽग्निर्विभागादिकर्मकृद्विद्युद्रूपोऽग्निश्च युक्त्या संयोजितः बह्वैश्वर्यं जनयति तथा सत्पुरुषाणां प्रशंसा सर्वेषां श्रेष्ठत्वाय प्रकल्प्यते ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात विद्युत, विद्वान, सूर्य व विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.

भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसा अग्नी व वेगवेगळ्या क्षेत्रात काम करणारा विद्युतरूपी अग्नी युक्तीने संयुक्त केल्यास अत्यंत ऐश्वर्य निर्माण करतो तशी सत्पुरुषांची प्रशंसा सर्वांची श्रेष्ठता वाढावी यासाठी केली जाते. ॥ १ ॥