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स्वप्ने॑ना॒भ्युप्या॒ चुमु॑रिं॒ धुनिं॑ च ज॒घन्थ॒ दस्युं॒ प्र द॒भीति॑मावः। र॒म्भी चि॒दत्र॑ विविदे॒ हिर॑ण्यं॒ सोम॑स्य॒ ता मद॒ इन्द्र॑श्चकार॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

svapnenābhyupyā cumuriṁ dhuniṁ ca jaghantha dasyum pra dabhītim āvaḥ | rambhī cid atra vivide hiraṇyaṁ somasya tā mada indraś cakāra ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स्वप्ने॑न। अ॒भि॒ऽउप्य॑। चुमु॑रिम्। धुनि॑म्। च॒। ज॒घन्थ॑। दस्यु॑म्। प्र। द॒भीति॑म्। आ॒वः॒। र॒म्भी। चि॒त्। अत्र॑। वि॒वि॒दे॒। हिर॑ण्यम्। सोम॑स्य। ता। मदे॑। इन्द्रः॑। च॒का॒र॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:15» मन्त्र:9 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:16» मन्त्र:4 | मण्डल:2» अनुवाक:2» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब राजविषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - जो (इन्द्रः) सेनापति (स्वप्नेन) निद्रापन से वर्त्तमान (चुमुरिम्) मुखयुक्त अर्थात् चोरपन का मुख बनाये और (धुनिम्) कम्पते हुए (दस्युम्) बलात्कारी अति साहसकारी डाकू चोर का (अभ्युप्य) सब ओर से शिर मुँडवाकर (जघन्थ) मारे (दभीतिम्) हिंसक प्राणी को (प्रावः) उत्कर्षता से रक्खें (रम्भी) कार्यारम्भ करनेवाला (चित्) भी (अत्र) इस राज्य व्यवहार में (सोमस्य) विश्व का (हिरण्यम्) सुवर्ण (विविदे) पावे (सः) वह (मदे) हर्षके निमित्त (ता) उक्त कामों को (चकार) करे ॥९॥
भावार्थभाषाः - जो पुरुषार्थी जन डाकू आदि दुष्टों का निवारण कर श्रेष्ठों को रक्षा के निमित्त इकट्ठे करें, वे जगत् के बीच ऐश्वर्य को पाते हैं ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजविषयमाह।

अन्वय:

य इन्द्रस्सेनेशः स्वप्नेन सह वर्त्तमानं चुमुरिं च धुनिं दस्युमभ्युप्य जघन्थ दभीतिं प्रावो रम्भी चिदत्र सोमस्य हिरण्ययं विविदे स मदे तानि चकार ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (स्वप्नेन) शयनेन (अभ्युप्य) अभितो वपनं कृत्वा। अत्र दीर्घः (चुमुरिम्) वक्त्रसंयुक्तम् (धुनिम्) कम्पन्तम् (च) (जघन्थ) हन्यात् (दस्युम्) बलात्कारिणं चोरम् (प्र) (दभीतिम्) हिंसकम् (आवः) अवेत् (रम्भी) आरम्भी (चित्) अपि (अत्र) राज्यप्रबन्धे (विविदे) विन्देत (हिरण्यम्) सुवर्णम् (सोमस्य) विश्वस्य (ता) (मदे) (इन्द्रः) (चकार) ॥९॥
भावार्थभाषाः - ये पुरुषार्थिनो जना दस्य्वादीन् दुष्टान् निवार्य्य श्रेष्ठान् रक्षणे सन्दध्युस्ते जगत्यैश्वर्यं लभन्ते ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे पुरुषार्थी लोक दुष्टांचे निवारण करून श्रेष्ठांच्या रक्षणानिमित्त एकत्र येतात ते जगात ऐश्वर्य प्राप्त करतात. ॥ ९ ॥