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भि॒नद्ब॒लमङ्गि॑रोभिर्गृणा॒नो वि पर्व॑तस्य दृंहि॒तान्यै॑रत्। रि॒णग्रोधां॑सि कृ॒त्रिमा॑ण्येषां॒ सोम॑स्य॒ ता मद॒ इन्द्र॑श्चकार॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

bhinad valam aṅgirobhir gṛṇāno vi parvatasya dṛṁhitāny airat | riṇag rodhāṁsi kṛtrimāṇy eṣāṁ somasya tā mada indraś cakāra ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

भि॒नत्। ब॒लम्। अङ्गि॑रःऽभिः। गृ॒णा॒नः। वि। पर्व॑तस्य। दृं॒हि॒तानि॑। ऐ॒र॒त्। रि॒णक्। रोधां॑सि। कृ॒त्रिमा॑णि। ए॒षा॒म्। सोम॑स्य। ता। मदे॑। इन्द्रः॑। च॒का॒र॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:15» मन्त्र:8 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:16» मन्त्र:3 | मण्डल:2» अनुवाक:2» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर प्रकारान्तर से विद्वानों के विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् (गृणानः) प्रशंसा करते हुए आप जैसे (इन्द्रः) सर्वपदार्थ छिन्न-भिन्न करता सूर्य (अङ्गिरोभिः) अङ्गों के सदृश किरणों से (पर्वतस्य) मेघ के समान प्रजा के (बलम्) बल को (विभिनत्) विशेषता से छिन्न-भिन्न करता (सोमस्य) विश्व के (दृंहितानि) बढ़े हुए पदार्थों को (ऐरत्) प्राप्त होता वा (एषाम्) इन पदार्थों के (कृत्रिमाणि) कृत्रिम (रोधांसि) आवरणों को अर्थात् जिनसे यह उन्नति को नहीं प्राप्त होते उन पदार्थों को (रिणक्) मारता नष्ट करता (ता) उक्त कामों को (मदे) हर्ष के निमित्त (चकार) करता है वैसा प्रयत्न करिये ॥८॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे वायु के सहाय से अग्नि अद्भुत कर्मों को करता है, वैसे धार्मिक विद्वान् के सहाय से मनुष्य बड़े-बड़े उत्तम काम कर सकते हैं ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः प्रकारान्तरेण विद्वद्विषयमाह।

अन्वय:

हे विद्वन् गृणानस्त्वं यथेन्द्रः सूर्योऽङ्गिरोभिः पर्वतस्य बलं विभिनत्सोमस्य दृंहितानैरेदेषां कृत्रिमाणि रोधांसि रिणक् ता मदे चकार तथा प्रयतस्व ॥०८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (भिनत्) भिनत्ति (बलम्) मेघम् (अङ्गिरोभिः) अङ्गसदृशैः किरणैः (गृणानः) (वि) (पर्वतस्य) मेघस्येव प्रजायाः (दृंहितानि) वर्द्धितानि (ऐरत्) प्राप्नोति (रिणक्) हिनस्ति (रोधांसि) आवरणानि (कृत्रिमाणि) क्रियमाणानि (एषाम्) (सोमस्य) विश्वस्य (ता) (मदे) (इन्द्रः) (चकार) ॥८॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यथा वायुसहायेनाग्निरद्भुतानि कर्माणि करोति तथा धार्मिकविद्वत्सहायेन मनुष्या महान्त्युत्तमानि कर्माणि कर्त्तुं शक्नुवन्ति ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो! जसे वायूच्या साह्याने अग्नी अद्भुत कार्य करतो तसे धार्मिक विद्वानाच्या साह्याने माणसे महान कार्ये करतात. ॥ ८ ॥