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अध्व॑र्यवो॒ यन्न॑रः का॒मया॑ध्वे श्रु॒ष्टी वह॑न्तो नशथा॒ तदिन्द्रे॑। गभ॑स्तिपूतं भरत श्रु॒तायेन्द्रा॑य॒ सोमं॑ यज्यवो जुहोत॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

adhvaryavo yan naraḥ kāmayādhve śruṣṭī vahanto naśathā tad indre | gabhastipūtam bharata śrutāyendrāya somaṁ yajyavo juhota ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अध्व॑र्यवः। यत्। न॒रः॒। का॒मया॑ध्वे। श्रु॒ष्टी। वह॑न्तः। न॒श॒थ॒। तत्। इन्द्रे॑। गभ॑स्तिऽपूतम्। भ॒र॒त॒। श्रु॒ताय॑। इन्द्रा॑य॒। सोम॑म्। य॒ज्य॒वः॒। जु॒हो॒त॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:14» मन्त्र:8 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:14» मन्त्र:2 | मण्डल:2» अनुवाक:2» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब प्रजा विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अध्वर्यवः) सबका हित चाहनेवाले (नरः) नायक मनुष्यो ! तुम (यत्) जिस राज्य वा धन को (श्रुष्टी) शीघ्र (वहन्तः) प्राप्त करते हुए (कामयाध्वे) उसकी कामना करो (नशथ) वा छिपाओ (तत्) उस (गभस्तिपूतम्) किरणों वा बाहुओं से पवित्र किये हुए को (इन्द्रे) सभापति के निमित्त (भरत) धारण करो। हे (यज्यवः) संग करनेवाले जनो तुम (श्रुताय) जिसका प्रशंसित श्रुति विषय है उस (इन्द्राय) सभापति के लिये (सोमम्) ओषधियों के रस को वा ऐश्वर्य को (जुहोत) ग्रहण करो ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वानो! जिस प्रकार की विद्या अपने अर्थ चाहो, वैसे दूसरों के लिये भी चाहो, जिससे सब बहुत ऐश्वर्यवाले हों ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ प्रजाविषयमाह।

अन्वय:

हे अध्वर्यवो नरो यूयं यच्छ्रुष्टी वहन्तः कामयाध्वे नशथ तद्गभस्तिपूतमिन्द्राय भरत। हे यज्यवो यूयं श्रुतायेन्द्राय सोमं जुहोत ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अध्वर्यवः) सर्वहितं कामयमानाः (यत्) यद्राज्यं धनं वा (नरः) नायकाः (कामयाध्वे) कामयध्वम् (श्रुष्टी) सद्यः। अत्र संहितायामिति दीर्घः (वहन्तः) (नशथ) अदृश्या भवथ। अत्राऽन्येषामपीति दीर्घः (तत्) (इन्द्रे) सभेशे (गभस्तिपूतम्) गभस्तिभिः किरणैर्वा बाहुभ्यां पवित्रीकृतम् (भरत) (श्रुताय) प्रशंसितश्रुतिविषयाय (इन्द्राय) सभेशाय (सोमम्) ओषधिरसमैश्वर्यं वा (यज्यवः) सङ्गन्तारः (जुहोत) गृह्णीत ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वांसो यादृशीं विद्यां स्वार्थां कामयध्वं तथान्यार्थामपि कामयन्तां येन सर्वे बह्वैश्वर्य्ययुक्ताः स्युः ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे विद्वानांनो! जशी स्वतःसाठी विद्येची इच्छा करता तशी दुसऱ्यासाठीही करा. ज्यामुळे सर्वजण खूप ऐश्वर्यवान व्हावेत. ॥ ८ ॥