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अध्व॑र्यवः॒ पय॒सोध॒र्यथा॒ गोः सोमे॑भिरीं पृणता भो॒जमिन्द्र॑म्। वेदा॒हम॑स्य॒ निभृ॑तं म ए॒तद्दित्स॑न्तं॒ भूयो॑ यज॒तश्चि॑केत॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

adhvaryavaḥ payasodhar yathā goḥ somebhir īm pṛṇatā bhojam indram | vedāham asya nibhṛtam ma etad ditsantam bhūyo yajataś ciketa ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अध्व॑र्यवः। पय॑सा। ऊधः॑। यथा॑। गोः। सोमे॑भिः। ई॒म्। पृ॒ण॒त॒। भो॒जम्। इन्द्र॑म्। वेद॑। अ॒हम्। अ॒स्य॒। निऽभृ॑तम्। मे॒। ए॒तत्। दित्स॑न्तम्। भूयः॑। य॒ज॒तः। चि॒के॒त॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:14» मन्त्र:10 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:14» मन्त्र:4 | मण्डल:2» अनुवाक:2» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अध्वर्यवः) बड़ी-२ ओषधियों के सिद्ध करनेवाले जनो तुम (यथा) जैसे (गोः) गौ के (पयसा) दूध से (ऊधः) ऐन भरा होता है वैसे (सोमेभिः) खाई हुई सोमादि ओषधियों के साथ (ईम्) जल को पी के (पृणत) तृप्त होओ जैसे (भोजम्) भोजन करनेवाले (इन्द्रम्) ऐश्वर्यवान् को (अहम्) मैं (वेद) जानूँ (अस्य) इसकी (निभृतम्) निश्चित पुष्टि को जानूँ वैसे तुम जानो जिस (मे) मेरे (एतत्) इस पूर्वोक्त पदार्थ के (दित्सन्तम्) देनेवाले का (यजतः) संग करते हुए जनों को जैसे मैं जानूँ वैसे इस विषय को (भूयः) बार-२ जो (चिकेत) जाने उसको तृप्त करो ॥१०॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। मनुष्य जैसे गौयें घास आदि को खा कर दूध उत्पन्न करती हैं, वैसे महौषधियों का संग्रह कर श्रेष्ठ औषधियों को सिद्ध करें ॥१०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे अध्वर्यवो यूयं यथा गोः पयसोधस्तथा सोमेभिरीं पीत्वा पृणत यथा भोजमिन्द्रमहं वेदाऽस्य निभृतं जानीयां तथा यूयं विजानीत यं म एतद्दित्सन्तं यजतश्च यथाहं वेद तथैतं भूयो यश्चिकेत तं पृणत ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अध्वर्यवः) महौषधिनिष्पादकाः (पयसा) दुग्धेन (ऊधः) स्तनाधारः (यथा) (गोः) धेनोः (सोमेभिः) सोमाद्योषधिभीर्भक्षिताभिः (ईम्) जलम् (पृणत) तृप्यत। अत्रापि दीर्घः (भोजम्) भोक्तारम् (इन्द्रम्) ऐश्वर्यवन्तम् (वेद) जानीयाम् (अहम्) (अस्य) (निभृतम्) निश्चितपोषणम् (मे) मम (एतत्) (दित्सन्तम्) दातुमिच्छन्तम् (भूयः) बहु (यजतः) सङ्गतान् (चिकेत) विजानीयात् ॥१०॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। मनुष्या यथा गावो घासादिकं जग्ध्वा दुग्धं जनयन्ति तथा महौषधीनां सङ्ग्रहं कृत्वा श्रेष्ठान्यौषधानि निष्पादयेयुः ॥१०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जशा गायी तृण वगैरे खाऊन दूध उत्पन्न करतात तसे माणसांनी महौषधींचा संग्रह करून श्रेष्ठ औषधींना सिद्ध करावे. ॥ १० ॥