अध्व॑र्यवो॒ भर॒तेन्द्रा॑य॒ सोम॒माम॑त्रेभिः सिञ्चता॒ मद्य॒मन्धः॑। का॒मी हि वी॒रः सद॑मस्य पी॒तिं जु॒होत॒ वृष्णे॒ तदिदे॒ष व॑ष्टि॥
adhvaryavo bharatendrāya somam āmatrebhiḥ siñcatā madyam andhaḥ | kāmī hi vīraḥ sadam asya pītiṁ juhota vṛṣṇe tad id eṣa vaṣṭi ||
अध्व॑र्यवः। भर॑त। इन्द्रा॑य। सोम॑म्। आ। अम॑त्रेभिः। सि॒ञ्च॒त॒। मद्य॑म्। अन्धः॑। का॒मी। हि। वी॒रः। सद॑म्। अ॒स्य॒। पी॒तिम्। जु॒होत॑। वृष्णे॑। तत्। इत्। ए॒षः। व॒ष्टि॒॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब बारह चावाले चौदहवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में सोम के गुणों को कहते हैं।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ सोमगुणानाह।
हे अध्वर्यवो यूयं य एषः कामी वीरो वृष्णेऽस्य पीतिं वष्टि तदित्सदं हि यूयं जुहोतेन्द्रायामत्रेर्मद्यमन्धः सोमं सिञ्चत बलमाभरत ॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात सोम, विद्युत, राजा व प्रजा आणि क्रिया कुशलतेचे प्रयोजन यांच्या वर्णनाने या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.