वांछित मन्त्र चुनें

यो भोज॑नं च॒ दय॑से च॒ वर्ध॑नमा॒र्द्रादा शुष्कं॒ मधु॑मद्दु॒दोहि॑थ। स शे॑व॒धिं नि द॑धिषे वि॒वस्व॑ति॒ विश्व॒स्यैक॑ ईशिषे॒ सास्यु॒क्थ्यः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yo bhojanaṁ ca dayase ca vardhanam ārdrād ā śuṣkam madhumad dudohitha | sa śevadhiṁ ni dadhiṣe vivasvati viśvasyaika īśiṣe sāsy ukthyaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यः। भोज॑नम्। च॒। दय॑से। च॒। वर्ध॑नम्। आ॒र्द्रात्। आ। शुष्क॑म्। मधु॑ऽमत्। दु॒दोहि॑थ। सः। शे॒व॒धिम्। नि। द॒धि॒षे॒। वि॒वस्व॑ति। विश्व॑स्य। एकः॑। ई॒शि॒षे॒। सः। अ॒सि॒। उ॒क्थ्यः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:13» मन्त्र:6 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:11» मन्त्र:1 | मण्डल:2» अनुवाक:2» मन्त्र:6


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब ईश्वर के विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे जगदीश्वर ! (यः) जो (एकः) एक असहाय अद्वितीय आप (विवस्वति) सूर्य में अभिव्याप्त होते (विश्वस्य) समस्त जगत् के (भोजनम्) पालन (च) और पुरुषार्थ और वृद्धि की (दयसे) रक्षा करते (ईशिषे) और ईश्वरता को प्राप्त हैं वा (शुष्कम्) सूखे पदार्थ को (आर्द्रात्) गीले पदार्थ से (मधुमत्) मधुर गुणयुक्त (दुदोहिथ) परिपूर्ण करते (सः) वह आप (शेवधिम्) निधिरूप पदार्थ को (निदधिषे) निरन्तर धारण करते हैं इस कारण (सः) वह आप (उक्थ्यः) प्रशंसनीयों में प्रसिद्ध (असि) हैं ॥६॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो पालना करता हुआ ईश्वर समस्त जगत् का निर्माण कर और उसी की रक्षा कर सिद्धि करनेवाले पदार्थों को देकर समस्त विश्व को सुखों से परिपूर्ण करता है, वह एक ही उपासना के योग्य है ॥६॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथेश्वरविषयमाह।

अन्वय:

हे जगदीश्वर य एकस्त्वं विवस्वति विश्वस्य भोजनं च वर्द्धनं च दयसे ईशिषे शुष्कमार्द्रान्मधुमद्दुदोहिथ स त्वं शेवधिं निदधिषे अतः स त्वमुक्थ्योऽसि ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) (भोजनम्) पालनम् (च) पुरुषार्थम् (दयसे) (च) धरति (वर्द्धनम्) (आर्द्रात्) (आ) समन्तात् (शुष्कम्) अस्नेहम् (मधुमत्) बहुमधुरगुणयुक्तम् (दुदोहिथ) धोक्षि (सः) (शेवधिम्) निधिम् (नि) नितराम् (दधिषे) धरसि (विवस्वति) सूर्ये (विश्वस्य) सर्वस्य जगतः (एकः) असहायोऽद्वितीयः (ईशिषे) ईश्वरोऽसि (सः) (असि) (उक्थ्यः) ॥६॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या यो दयमान ईश्वरः सर्वं जगन्निर्माय संरक्ष्य रक्षणसाधनान्पदार्थान्दत्वा सर्वं विश्वं सुखैः पिपर्त्ति स एक एवोपासितुं योग्योऽस्ति ॥६॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! जो दयाळू ईश्वर संपूर्ण जगाची निर्मिती व रक्षण करून निरनिराळे पदार्थ देतो व संपूर्ण विश्व सुखाने परिपूर्ण करतो, तोच उपासना करण्यायोग्य आहे. ॥ ६ ॥