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यं स्मा॑ पृ॒च्छन्ति॒ कुह॒ सेति॑ घो॒रमु॒तेमा॑हु॒र्नैषो अ॒स्तीत्ये॑नम्। सो अ॒र्यः पु॒ष्टीर्विज॑इ॒वा मि॑नाति॒ श्रद॑स्मै धत्त॒ स ज॑नास॒ इन्द्रः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yaṁ smā pṛcchanti kuha seti ghoram utem āhur naiṣo astīty enam | so aryaḥ puṣṭīr vija ivā mināti śrad asmai dhatta sa janāsa indraḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यम्। स्म॒। पृ॒च्छन्ति॑। कुह॑। सः। इति॑। घो॒रम्। उ॒त। ई॒म्। आ॒हुः॒। न। ए॒षः। अ॒स्ति॒। इति॑। ए॒न॒म्। सः। अ॒र्यः। पु॒ष्टीः। विजः॑ऽइव। आ। मि॒ना॒ति॒। श्रत्। अ॒स्मै॒। ध॒त्त॒। सः। ज॒ना॒सः॒। इन्द्रः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:12» मन्त्र:5 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:7» मन्त्र:5 | मण्डल:2» अनुवाक:2» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (जनासः) मनुष्यो ! विद्वान् (यम्,स्म) जिसको (कुह,सः) वह कहाँ है (इति) ऐसा (ईम्) सबसे (पृच्छन्ति) पूछते हैं (उत) और कोई (एनम्) इसको (घोरम्) हननरूप हिंसारूप अर्थात् भयङ्कर (आहुः) कहते हैं, अन्य कोई (एषः) यह (न,अस्ति) नहीं है (इति) ऐसा कहते हैं (सः) वह (अर्यः) ईश्वर (विजइव) भय से जैसे कोई सञ्चलित हो चेष्टा करे वैसे दोषों को (आ,मिनाति) अच्छे प्रकार नष्ट करता है और (अस्मै) इस जीव के लिये (पुष्टीः) पुष्टियों और (श्रत्) सत्य को धारण करता (सः) वह (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् है, इसको तुम (धत्त) धारण करो ॥५॥
भावार्थभाषाः - जो आश्चर्य गुणकर्मस्वभावयुक्त परमेश्वर है उसको कोई वह कहाँ है, ऐसा कहते हैं, कोई उसको भयङ्कर, कोई शान्त और यह नहीं है ऐसा बहुत प्रकार से कहते हैं। वह सबका आधाभूत हुआ सत्य धर्म और जीवन के उपायों का वेद के द्वारा उपदेश करता है, वह सबको उपासना करने योग्य है ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे जनासो विद्वांसो ये स्म कुह स इतीं पृच्छन्ति उतैनं घोरमाहुरपरे एषो नास्तीति सोऽर्य ईश्वरो विजइव दोषानामिनात्यस्मै जीवाय पुष्टीः श्रच्च दधाति स इन्द्रोऽस्तीति यूयं धत्त ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यम्) (स्म) एव। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (पृच्छन्ति) (कुह) क्व (इति) (घोरम्) हननम् (उत) अपि (ईम्) सर्वतः (आहुः) कथयन्ति (न) निषेधे (एषः) (अस्ति) (इति) (एनम्) (सः) (अर्यः) ईश्वरः (पुष्टीः) पोषणानि (विजइव) भयेन सञ्चलित इव (आ) (मिनाति) हिनस्ति (श्रत्) सत्यम् (अस्मै) (धत्त) धरत (सः) (जनासः) (इन्द्रः) ॥५॥
भावार्थभाषाः - य आश्चर्यगुणकर्मस्वभावः परमेश्वरोऽस्ति तं केचित्क्वास्तीति ब्रुवन्ति केचिदेनं भयङ्करं केचिच्छान्तं केचिदयं नास्तीति बहुधा वदन्ति सः सर्वस्याधाभूतस्सन् सत्यं धर्मं जीवनोपायाँश्च वेदद्वारोपदिशति स सर्वैरुपासनीयः ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - आश्चर्यगुणकर्मस्वभावयुक्त परमेश्वर कुठे आहे असे काही जण विचारतात, तर तो भयंकर आहे असे काहीजण म्हणतात. तो शांत आहे असेही काही जण म्हणतात, तर तो असा नाही असेही पुष्कळ जण म्हणतात. तो सर्वांचा आधारभूत असून सत्य, धर्म व जीवनाच्या उपायांना वेदाद्वारे उपदेश करतो, तोच सर्वांनी उपासना करण्यायोग्य आहे. ॥ ५ ॥