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गुहा॑ हि॒तं गुह्यं॑ गू॒ळ्हम॒प्स्वपी॑वृतं मा॒यिनं॑ क्षि॒यन्त॑म्। उ॒तो अ॒पो द्यां त॑स्त॒भ्वांस॒मह॒न्नहिं॑ शूर वी॒र्ये॑ण॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

guhā hitaṁ guhyaṁ gūḻham apsv apīvṛtam māyinaṁ kṣiyantam | uto apo dyāṁ tastabhvāṁsam ahann ahiṁ śūra vīryeṇa ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

गुहा॑। हि॒तम्। गुह्य॑म्। गू॒ळ्हम्। अ॒प्सु। अपि॑ऽवृतम्। मा॒यिन॑म्। क्षि॒यन्त॑म्। उ॒तो इति॑। अ॒पः। द्याम्। त॒स्त॒भ्वांस॑म्। अह॑न्। अहि॑म्। शू॒र॒। वी॒र्ये॑ण॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:11» मन्त्र:5 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:3» मन्त्र:5 | मण्डल:2» अनुवाक:1» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (शूर) निर्भय राजन् ! जैसे (अप्सु) जलों में (अपीवृतम्) ढपे हुए (गूढम्) गुप्त पदार्थ को (अपः) और जलों को (उतो) तथा (द्याम्) प्रकाश को (तस्तभ्वांसम्) रोके हुए (अहिम्) मेघ को सूर्यमण्डल (अहन्) हनता है वैसे (वीर्येण) पराक्रम से (गुहा) गुप्तस्थान में (हितम्) धरे अर्थात् हित (गुह्यम्) गुप्त करने योग्य (क्षियन्तम्) निरन्तर वसते हुए (मायिनम्) मायावी शत्रुजन को मारो ॥५॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य अन्तरिक्षस्थ जलों में सोते हुए मेघ को हन के सब प्रजा को पुष्ट करता है। वैसे राजा कपट के बीच वर्त्तमान अधर्मी शत्रुजन को छिन्न-भिन्न कर प्रजा को सुखी करे ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे शूर यथाऽप्स्वपीवृतं गूढमप उतो द्यां तस्तभ्वांसमहिं सूर्योऽहँस्तथा वीर्य्येण गुहा हितं गुह्यं क्षियन्तं मायिनं हन्याः ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (गुहा) गुहायाम् (हितम्) धृतम् (गुह्यम्) गोप्तुं योग्यम् (गूढम्) गुप्तम् (अप्सु) जलेषु (अपीवृतम्) आच्छादितम् (मायिनम्) मायाविनम् (क्षियन्तम्) निवसन्तम् (उतो) अपि (अपः) जलानि (द्याम्) प्रकाशम् (तस्तभ्वांसम्) स्तम्भितवन्तम् (अहन्) हन्ति (अहिम्) मेघम् (शूर) निर्भय (वीर्येण) पराक्रमेण ॥५॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सूर्य्योऽन्तरिक्षस्थमप्सु शयानं मेघं हत्वा सर्वाः प्रजाः पुष्णाति तथा राजा कपटे वर्त्तमानमधर्मिणं शत्रुं भित्त्वा प्रजाः सुखयेत् ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा सूर्य अंतरिक्षातील जलामध्ये निद्रिस्त असलेल्या मेघांचे हनन करून सर्व प्रजेला पुष्ट करतो तसे राजाने कपटी, अधर्मी शत्रूजनांना नष्ट करून प्रजेला सुखी करावे. ॥ ५ ॥