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सने॑म॒ ये त॑ ऊ॒तिभि॒स्तर॑न्तो॒ विश्वाः॒ स्पृध॒ आर्ये॑ण॒ दस्यू॑न्। अ॒स्मभ्यं॒ तत्त्वा॒ष्ट्रं वि॒श्वरू॑प॒मर॑न्धयः सा॒ख्यस्य॑ त्रि॒ताय॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sanema ye ta ūtibhis taranto viśvāḥ spṛdha āryeṇa dasyūn | asmabhyaṁ tat tvāṣṭraṁ viśvarūpam arandhayaḥ sākhyasya tritāya ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सने॑म। ये। ते॒। ऊ॒तिऽभिः॑। तर॑न्तः। विश्वाः॑। स्पृधः॑। आर्ये॑ण। दस्यू॑न्। अ॒स्मभ्य॑म्। तत्। त्वा॒ष्ट्रम्। वि॒श्वऽरू॑पम्। अर॑न्धयः। सा॒ख्यस्य॑। त्रि॒ताय॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:11» मन्त्र:19 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:6» मन्त्र:4 | मण्डल:2» अनुवाक:1» मन्त्र:19


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे सेनापति ! (ये) जो (ते) आपकी (ऊतिभिः) रक्षा आदि कामों की करनेवाली सेनाओं से (विश्वाः) समस्त (स्पृधः) स्पर्द्धा करनेवालों को (तरन्तः) उल्लंघन करते हुए हम लोग (त्रिताय) त्रिविध अर्थात् शारीरिक वाचिक और मानसिक सुख जिसको प्राप्त उसके लिये (आर्य्येण) उत्तम विद्या और धर्म सामर्थ्य के साथ (दस्यून्) डाकुओं को जीतें जो (साख्यस्य) मित्रपन वा मित्रकर्म करने का (विश्वरूपम्) विविध स्वरूप (त्वाष्ट्रम्) प्रकाशमान का रचा हुआ है उसको (सनेम) अलग-अलग करें (तत्) उसको आप (अस्मभ्यम्) हम लोगों के लिये सिद्ध करो और डाकुओं को (अरन्धयः) नष्ट करो ॥१९॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य किये हुए को जाननेवाले विद्वान् को सेनापति का अधिकार कर श्रेष्ठ पुरुषों के साथ कर्त्तव्य और अकर्त्तव्य कामों को अच्छे प्रकार निश्चय कर प्रजा सुख की सिद्धि करें, वे सब सुखों को प्राप्त होवें ॥१९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे सेनेश ये ते तवोतिभिर्विश्वास्पृधस्तरन्तो वयं त्रितायाऽऽर्य्येण सह दस्यून्विजयेमहि। यत्साख्यस्य विश्वरूपं त्वाष्ट्रं सनेम तत्तत्त्वमस्मभ्यं सम्पादय दस्यूनरन्धयः ॥१९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सनेम) विभेजम (ये) (ते) तव (ऊतिभिः) रक्षणादिकर्त्रीभिः सेनाभिः (तरन्तः) उल्लङ्घमानाः (विश्वाः) सर्वान् (स्पृधः) स्पर्द्धमानान् (आर्येण) उत्तमविद्याधर्मसामर्थ्येन (दस्यून्) बलात्कारेण परस्वापहर्तॄन् (अस्मभ्यम्) (तत्) (त्वाष्ट्रम्) त्वष्ट्रा निर्मितम् (विश्वरूपम्) विविधस्वरूपम् (अरन्धयः) हिंस (साख्यस्य) सख्युः कर्मणो भावस्य निर्माणस्य (त्रिताय) त्रिविधानां शारीरिकवाचिकमानसानां सुखानां प्राप्तिर्यस्य तस्मै ॥१९॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्याः कृतज्ञं विद्वांसं सेनापतिमधिकृत्य श्रेष्ठैः पुरुषैः सह कर्त्तव्याऽकर्त्तव्ये सुनिश्चित्य प्रजासुखं साधयेयुस्ते सर्वाणि सुखानि लभेरन् ॥१९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे कृतज्ञ विद्वानाला सेनापती करून श्रेष्ठ पुरुषांबरोबर कर्तव्याकर्तव्याचा चांगल्या प्रकारे निश्चय करून प्रजासुख सिद्ध करतात, ती सर्व सुख प्राप्त करतात. ॥ १९ ॥