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त्वं तान्त्सं च॒ प्रति॑ चासि म॒ज्मनाग्ने॑ सुजात॒ प्र च॑ देव रिच्यसे। पृ॒क्षो यदत्र॑ महि॒ना वि ते॒ भुव॒दनु॒ द्यावा॑पृथि॒वी रोद॑सी उ॒भे॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvaṁ tān saṁ ca prati cāsi majmanāgne sujāta pra ca deva ricyase | pṛkṣo yad atra mahinā vi te bhuvad anu dyāvāpṛthivī rodasī ubhe ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वम्। तान्। सम्। च॒। प्रति॑। च॒। अ॒सि॒। म॒ज्मना॑। अग्ने॑। सु॒ऽजा॒त॒। प्र। च॒। दे॒व॒। रि॒च्य॒से॒। पृ॒क्षः। यत्। अत्र॑। म॒हि॒ना। वि। ते॒। भुव॑त्। अनु॑। द्यावा॑पृथि॒वी इति॑। रोद॑सी इति॑। उ॒भे इति॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:1» मन्त्र:15 | अष्टक:2» अध्याय:5» वर्ग:19» मन्त्र:5 | मण्डल:2» अनुवाक:1» मन्त्र:15


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सुजात) सुन्दर प्रसिद्धिमान् (देव) विद्या देनेवाले (अग्ने) बिजुली के समान सबसे अलग विद्वान् ! जो (त्वम्) आप (मज्मना) बल से वा पुरुषार्थ से (तान्) उन मनुष्यों को कि जो मोक्ष सुख और सांसारिक सुख साधनेवाले हैं। (प्रतिच) प्रतिनिधि और (सम् च) मिले हुए भी (असि) हैं। (च) और (प्ररिच्यसे) अलग होते हो और (उभे) दोनों (रोदसी) सांसारिक तुच्छ सुख के कारण रोने के निमित्त जो (द्यावापृथिवी) द्यावापृथिवी के समान (महिना) अपने महिमा से (यत्) जो (अत्र) यहाँ (पृक्षः) विद्या सम्बन्ध को भी प्राप्त हो जिन (ते) आपकी विद्या (अनु, वि, भुवत्) अनुकूल विशेषता से होती है। सो आप हमारे अध्यापक और उपदेशक हूजिये ॥१५॥
भावार्थभाषाः - जैसे अग्नि में अनेक गुण हैं, वैसे विद्वानों की सेवा करने और धर्म में प्रवर्त्तमान होने वाले तथा अधर्म से निवृत्त जनों में इस संसार में बहुत शुभ गुण उत्पन्न होते हैं ॥१५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे सुजात देवाऽग्ने यस्त्वं मज्मना ताँश्च प्रति च संचासि प्ररिच्यसे च उभे रोदसी द्यावापृथिवी इव महिना यदत्र पृक्षः प्राप्तोऽसि यस्य ते तव विद्याऽनु विभुवत् स च त्वमस्माकमध्यापक उपदेशकश्च भव ॥१५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वम्) (तान्) निःश्रेयसाभ्युदयसाधकान्नॄन् (सम्) सङ्घाते (च) (प्रति) प्रतिनिधौ (च) असि (मज्मना) बलेन (अग्ने) विद्युद्वद्व्यतिरिक्त (सुजात) सुष्ठुप्रसिद्धे (प्र) (च) (देव) विद्यादातः (रिच्यसे) पृथग्भवसि (पृक्षः) विद्यासंपर्चनम् (यत्) (अत्र) अस्मिन् संसारे (महिना) महिम्ना (वि) (ते) तव (भुवत्) भवति (अनु) (द्यावापृथिवी) (रोदसी) रोदननिमित्ते (उभे) द्वे ॥१५॥
भावार्थभाषाः - यथा पावकेऽनेके गुणाः सन्ति तथा विद्वत्सेविषु धर्म्ये प्रवर्त्तमानेष्वधर्मान्निवृत्तेष्विह बहवः शुभगुणा जायन्ते ॥१५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसे अग्नीमध्ये अनेक गुण असतात तसे विद्वानाच्या सेवेत रत असलेल्या व अधर्मापासून निवृत्त असलेल्या माणसांमध्ये अनेक शुभ गुण उत्पन्न होतात. ॥ १५ ॥