पदार्थान्वयभाषाः - (सः-हि) वह ही परमात्मा (विद्युता द्युता) विशेष दीप्ति से तेजस्विता से (पृथुम्) प्रथनशील विस्तृत (साम) शान्तिपद-मोक्ष को प्राप्त कराता है, वह मोक्ष में (असुरत्व) प्राणप्रदरूप से अत्यन्त आयुप्रदरूप से (सः) वह परमात्मा (सनीळेभिः) समान गृहवासी उपासक आत्माओं के द्वारा (प्रसहानः) धार्यमाण-ध्यान में आया हुआ, उपासना में आया हुआ (योनिं ससाद) उन उपासक आत्माओं के हृदयगृह को प्राप्त होता है-साक्षात् होता है (अस्य भ्रातुः) इस भरणकर्त्ता पोषणकर्त्ता (सप्तथस्य) सप्तस्थ-भूः, भुवः, आदि सप्तलोक में स्थित की (मायाः) प्रज्ञाएँ-बुद्धिकौशल (न) इस समय (ऋते) जगत् में उपादानकारण प्रकृति में वर्त्तमान हैं ॥२॥
भावार्थभाषाः - आत्मा की विशेष दीप्तिमत्ता और तेजस्विता से परमात्मा विस्तृत शान्तिपद मोक्ष को प्राप्त कराता है, वह मोक्ष में लम्बी आयु को प्रदान करता है, उपासकों द्वारा उपासित हुआ परमात्मा उनके हृदय में साक्षात् होता है, भूः, भुवः, आदि सप्तलोकों में स्थित परमात्मा के बुद्धिकौशल उपादान-कारण प्रकृति में वर्त्तमान होकर जगत् में दृष्टिगोचर होते हैं ॥२॥