पदार्थान्वयभाषाः - (अस्य) इस मानसयज्ञ या अध्यात्मयज्ञ की (सप्त परिधयः-आसन्) सात परिधियाँ हैं, जो “भूः भुवः स्वः महः जनः तपः सत्यम्” ये सात लोक परिधियाँ हैं, इनके विवेचन में यह यज्ञ चलता है और यजनीय परमात्मा का साक्षात्कार होता है (त्रिः सप्त) तीन गुणित सात अर्थात् इक्कीस (समिधः कृताः) समिधाएँ हैं, जो दश प्राण दश इन्द्रियाँ और एक मन हैं, ये उसमें होमे जाते हैं (यत्) यतः-जिससे (देवाः) ध्यानी विद्वान् जन (यज्ञं तन्वानाः) अध्यात्मयज्ञ का अनुष्ठान करते हुए-अनुष्ठान करने के हेतु (पशुं पुरुषम्) सर्वद्रष्टा पूर्ण पुरुष परमात्मा को (अबध्नन्) अपने आत्मा में बाँधते हैं-धारण करते हैं ॥१५॥
भावार्थभाषाः - अध्यात्मयज्ञ बाहरी सप्त लोकों के विवेचन में चलता है और उसमें दश प्राण, दश इन्द्रियाँ और मन, जो आत्मा की शक्तियाँ हैं, उन्हें लगाया जाता है-समर्पित किया जाता है, तब आत्मा के अन्दर परमात्मा का साक्षात् होता है ॥१५॥