अ॒प्सु मे॒ सोमो॑ अब्रवीद॒न्तर्विश्वा॑नि भेष॒जा । अ॒ग्निं च॑ वि॒श्वश॑म्भुवम् ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
मन्त्र उच्चारण
apsu me somo abravīd antar viśvāni bheṣajā | agniṁ ca viśvaśambhuvam ||
पद पाठ
अ॒प्ऽसु । मे॒ । सोमः॑ । अ॒ब्र॒वी॒त् । अ॒न्तः । विश्वा॑नि । भे॒ष॒जा । अ॒ग्निम् । च॒ । वि॒श्वऽश॑म्भुवम् ॥ १०.९.६
ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:9» मन्त्र:6
| अष्टक:7» अध्याय:6» वर्ग:5» मन्त्र:6
| मण्डल:10» अनुवाक:1» मन्त्र:6
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ब्रह्ममुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (सोमः) उत्पादक परमात्मा (मे) मेरे लिये (अब्रवीत्) कहता है-उपदेश देता है, कि (अप्सु-अन्तः) जलों के अन्दर (विश्वानि भेषजा) सारे औषध हैं (विश्वशंभुवम्-अग्निं च) सर्वकल्याण करनेवाले अग्नि को भी कहता है-उपदिष्ट करता है ॥६॥
भावार्थभाषाः - जलों में सर्वरोगों को दूर करनेवाले गुण हैं, विविध रीति से सेवन करने से-स्नान, पान, स्पर्श, मार्जन, आचमन आदि द्वारा वे प्राप्त होते हैं। जलों के अन्दर अग्नि भी है, वह स्वास्थ्य का संरक्षण करती है। वह जलों में स्वतः प्रविष्ट है, विद्युद्रूप से बाहर प्रकट होती है। इसी प्रकार आप्त जन, लोगों के आन्तरिक दोषों को दूर करते हैं और उनमें गुणों का आधान करते हैं ॥६॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार
विश्व- भेषज
पदार्थान्वयभाषाः - [१] (सोमः) = सोम शक्ति के पुञ्ज प्रभु ने (मे) = मेरे लिये (अब्रवीत्) = यह प्रतिपादन किया है कि (अप्सु अन्तः) = जलों के अन्दर (विश्वानि भेषजः) = सम्पूर्ण औषध हैं। सब रोग जलों के ठीक प्रयोग से चिकित्सित हो सकते हैं। कोई भी रोग ऐसा नहीं जो कि इन जलों के लिये असाध्य हो । 'जल घातने' इस धातु से बना हुआ 'जल' शब्द ही इस बात का संकेत कर रहा है कि ये सब रोगों का (घात) = विनाश करनेवाले हैं । [२] प्रभु का 'सोम' नाम से स्मरण भी यहाँ भी व पूर्ण है, ये जल ही वस्तुतः 'आप: रेतो भूत्वा० ' रेतः कण बनकर शरीर में प्रविष्ट होते हैं और ये हमें सोम [semen] शक्ति सम्पन्न बनाते हैं। यह सोम शक्ति ही रोगों का विनाश करती है। [३] प्रभु ने (च) = यह भी प्रतिपादित किया है कि (अग्निं विश्वशंभुवम्) = अग्नि सब रोगों को शान्त करनेवाली है। इस प्रकार 'अप्सुः व अग्निं' शब्द 'जलों में अग्नि' को सब रोगों का शामक व भेषज कर रहे हैं। इन शब्दों में पीने के लिये गरम जल के प्रयोग का संकेत स्पष्ट है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- गरम जल ही पीना चाहिए, यह हमारे सब रोगों को शान्त करेगा ।
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ब्रह्ममुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (सोमः) उत्पादकः परमात्मा (मे) मह्यम् (अब्रवीत्) उपदिशति (अप्सु-अन्तः) अपामभ्यन्तरे (विश्वानि भेषजा) सर्वाण्यप्यौषधानि सन्ति (विश्वशंभुवम्-अग्निं च) सर्वकल्याणस्य भावयितारं साधकमग्निं च ‘अब्रवीत्’ ब्रवीति ॥६॥
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डॉ. तुलसी राम
पदार्थान्वयभाषाः - Soma in the waters touches and speaks to me: All sanatives reside in the waters which also contain the vital warmth and fire of Agni for peace and blessedness of all.
