तस्मा॒ अरं॑ गमाम वो॒ यस्य॒ क्षया॑य॒ जिन्व॑थ । आपो॑ ज॒नय॑था च नः ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
मन्त्र उच्चारण
tasmā araṁ gamāma vo yasya kṣayāya jinvatha | āpo janayathā ca naḥ ||
पद पाठ
तस्मै॑ । अर॑म् । ग॒मा॒म॒ । वः॒ । यस्य॑ । क्षया॑य । जिन्व॑थ । आपः॑ । ज॒नय॑थ । च॒ । नः॒ ॥ १०.९.३
ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:9» मन्त्र:3
| अष्टक:7» अध्याय:6» वर्ग:5» मन्त्र:3
| मण्डल:10» अनुवाक:1» मन्त्र:3
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ब्रह्ममुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (यस्य) जिस रस के (क्षयाय) निवास के लिए-सात्म्य करने के लिए-संस्थापित करने के लिए (आपः) हे जलो ! (जिन्वथ) तृप्त करते हो (तस्मै) उस रस के लिए-उसकी पुष्टि के लिए (वः) तुम्हें (अरं गमाम) हम पूर्णरूप से सेवन करते हैं (च) और (नः) हमें (जनयथ) प्रादुर्भूत-समृद्ध-पुष्ट करते हो ॥३॥
भावार्थभाषाः - जल का सार भाग शरीर में सात्म्य हो जाता है, वह समृद्ध करने, पुष्ट करने का निमित्त बनता है। इसी प्रकार आप विद्वान् जनों का ज्ञान-सार आत्मा में बैठ जाता है, जो आत्मा को बल देता है ॥३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार
जननशक्ति
पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (आपः) = जलो ! (यस्य क्षयाय) = जिस रस के निवास के हेतु से आप (जिन्वथ) = हमें प्रीणित करते हो, दोषों को दूर करके तृप्ति व प्रसन्नता का अनुभव कराते हो, (व:) = आपके (तस्मा) = उस रस के लिये (अरं गमाम) = हम खूब गायें, अर्थात् उस रस को खूब ही प्राप्त करने का प्रयत्न करें। जलों में एक रस है जो कि हमारे जीवन को नीरोग, निर्मल व सशक्त बनाकर हमें प्रसन्नता का अनुभव कराता है। हम उस रस को प्राप्त करने का पूर्ण प्रयत्न करें। [२] हे (आपः) = जलो ! आप (च) = और (नः) = हमें (जनयथा) = विकसित शक्ति वाला करो। अथवा जननशक्ति से युक्त करो। वस्तुतः यहाँ यह संकेत स्पष्ट है कि जलों का समुचित प्रयोग वन्ध्यात्व को तथा नपुंसकत्व को नष्ट करता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- जल अपने रसों से हमें प्रीणित करते हैं तथा हमारी शक्तियों का विकास करनेवाले हैं ।
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ब्रह्ममुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (यस्य क्षयाय) यस्य रसस्य निवासाय शरीरे सात्म्यकरणाय संस्थापनाय “क्षि निवासगत्योः” [तुदादिः] (आपः-जिन्वथ) हे आपः ! तर्पयथ (तस्मै वः-अरं गमाम) तत्प्राप्तये युष्मान् पूर्णरूपेण सेवेमहि (च) यतश्च (नः-जनयथ) अस्मान् प्रादुर्भावयथ पोषयथ, उक्तं यथा-“वेत्थ यदा पञ्चम्यामाहुतावापः पुरुषवचसो भवन्ति” [छान्दो० ५।३।३] ॥३॥
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डॉ. तुलसी राम
पदार्थान्वयभाषाः - O holy waters, lovers of peace and pleasure of bliss, we come to you without delay for that pleasure, peace and enlightenment for the promotion and stability of which you move and impel people and powers and invigorate us too. Pray bless us with vigour and vitality.
