वांछित मन्त्र चुनें

कृ॒ष्णा यद्गोष्व॑रु॒णीषु॒ सीद॑द्दि॒वो नपा॑ताश्विना हुवे वाम् । वी॒तं मे॑ य॒ज्ञमा ग॑तं मे॒ अन्नं॑ वव॒न्वांसा॒ नेष॒मस्मृ॑तध्रू ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kṛṣṇā yad goṣv aruṇīṣu sīdad divo napātāśvinā huve vām | vītam me yajñam ā gatam me annaṁ vavanvāṁsā neṣam asmṛtadhrū ||

पद पाठ

कृ॒ष्णा । यत् । गोषु॑ । अ॒रु॒णीषु॑ । सीद॑त् । दि॒वः । नपा॑ता । अ॒श्वि॒ना॒ । हु॒वे॒ । वा॒म् । वी॒तम् । मे॒ । य॒ज्ञम् । आ । ग॒त॒म् । मे॒ । अन्न॑म् । व॒व॒न्वांसा॑ । न । इष॑म् । अस्मृ॑तध्रू॒ इत्यस्मृ॑तऽध्रू ॥ १०.६१.४

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:61» मन्त्र:4 | अष्टक:8» अध्याय:1» वर्ग:26» मन्त्र:4 | मण्डल:10» अनुवाक:5» मन्त्र:4


बार पढ़ा गया

ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (दिवः-नपाता-अश्विना) ज्ञानप्रकाशक के न गिरानेवाले सुशिक्षित स्त्रीपुरुषो ! (यत्) जिससे अथवा जब (अरुणीषु गोषु) मेरी शुभ्रज्ञानरश्मियों में (कृष्णा सीदत्) रात्रि के समान अज्ञानधारा बैठ जाये-आ जाये, तब (अस्मृतध्रू वां हुवे) ज्ञान का स्मरण-स्मृतिपथ प्राप्त पुनः धारण कराने वालों-तुम दोनों को मैं आह्वान करता हूँ (मे यज्ञम् आगतम्) मेरे गृहस्थयज्ञ को प्राप्त होओ (मे-अन्नं वीतम्-वीतम्) मेरे अन्न को-मेरे द्वारा समर्पित भोजन को खाओ (इषं ववन्वांसा-न) मनोवाञ्छा को भली-भाँति पूरा करते हुए सम्प्रति फिर स्मरण कराते हो ॥४॥
भावार्थभाषाः - स्नातक विद्या को अध्ययन करके ज्ञान का प्रकाश करनेवाला होता है। उसे अपने से बड़े सुशिक्षित स्त्री-पुरुषों को सम्बोधित करके कहना चाहिए कि मेरे ज्ञानप्रकाश के कार्य में कोई अज्ञान की धारा आ जाये, तो मुझे सावधान करें-चेतावें और कभी-कभी उन्हें अपने घर बुलाकर भोजन करावें ॥४॥