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अव॑ द्व॒के अव॑ त्रि॒का दि॒वश्च॑रन्ति भेष॒जा । क्ष॒मा च॑रि॒ष्ण्वे॑क॒कं भर॑ता॒मप॒ यद्रपो॒ द्यौः पृ॑थिवि क्ष॒मा रपो॒ मो षु ते॒ किं च॒नाम॑मत् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ava dvake ava trikā divaś caranti bheṣajā | kṣamā cariṣṇv ekakam bharatām apa yad rapo dyauḥ pṛthivi kṣamā rapo mo ṣu te kiṁ canāmamat ||

पद पाठ

अव॑ । द्व॒के इति॑ । अव॑ । त्रि॒का । दि॒वः । च॒र॒न्ति॒ । भे॒ष॒जा । क्ष॒मा । च॒रि॒ष्णु॒ । ए॒क॒कम् । भर॑ताम् । अप॑ । यत् । रपः॑ । द्यौः । पृ॒थि॒वि॒ । क्ष॒मा । रपः॑ । मो इति॑ । सु । ते॒ । किम् । च॒न । आ॒म॒म॒त् ॥ १०.५९.९

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:59» मन्त्र:9 | अष्टक:8» अध्याय:1» वर्ग:23» मन्त्र:4 | मण्डल:10» अनुवाक:4» मन्त्र:9


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (दिवः-द्वके) आकाश से-द्युलोक और अन्तरिक्षलोक के दो दोषनाशक रोगनाशक रश्मि और जल दो भेषज (त्रिका भेषजा) तीन दोषनाशक रोगनाशक भेषज रश्मि जल और पृथिवी की खानेवाली ओषधियाँ (अव चरन्ति) यहाँ प्राप्त होती हैं (क्षमा यत्-रपः) क्षमा से सरल स्वभाववत्ता से या असावधानी से हुए पाप या दोष को (एककं चरिष्णु) एकमात्र या एक-एक प्राप्त भेषज (अप भरताम्) दूर हटादे-दूर करता है (द्यौः पृथिवी……) पूर्ववत् ॥९॥
भावार्थभाषाः - मानव के रोगों या दोषों को दूर करने के लिए तीनों लोकों से भेषज प्राप्त होते हैं। द्युलोक से सूर्य रश्मियाँ, अन्तरिक्षलोक से वृष्टि जल और पृथिविलोक से खाद्य-भोज्य वनस्पति प्राप्त होती हैं। इनका उपयोग करके मनुष्य को स्वस्थ होना चाहिए तथा अपनी असावधानी से अपनी सन्तान को उक्त रोग या दोष से बचाये रखना चाहिए ॥९॥
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (दिवः-द्वके) आकाशात्-द्युलोकस्यान्तरिक्षलोकस्य च द्वे दोशनाशके रोगनाशके रश्मिजलात्मके भेषजे (त्रिका भेषजा) त्रिका त्रीणि भेषजानि दोशनाशकानि रश्मिजलवनस्पतिरूपाणि (अव चरन्ति) अवरं प्राप्नुवन्ति प्राप्तानि सन्ति (क्षमा यत्-रपः) क्षमया सरलभाववतया-असावधानतया जातं रपः-कृतं दोषम् (एककं चरिष्णु) एकमात्रम्-एकैकं वा प्रापणशीलं भेषजम् (अप भरताम्) अपगमयतु दूरं करोति (द्यौः पृथिवि……) पूर्ववत् ॥९॥