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साम॒न्नु रा॒ये नि॑धि॒मन्न्वन्नं॒ करा॑महे॒ सु पु॑रु॒ध श्रवां॑सि । ता नो॒ विश्वा॑नि जरि॒ता म॑मत्तु परात॒रं सु निॠ॑तिर्जिहीताम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sāman nu rāye nidhiman nv annaṁ karāmahe su purudha śravāṁsi | tā no viśvāni jaritā mamattu parātaraṁ su nirṛtir jihītām ||

पद पाठ

साम॑न् । नु । रा॒ये । नि॒धि॒ऽमत् । नु । अन्न॑म् । करा॑महे । सु । पु॒रु॒ध । श्रवां॑सि । ता । नः॒ । विश्वा॑नि । ज॒रि॒ता । म॒म॒त्तु॒ । प॒रा॒ऽत॒रम् । सु । निःऽऋ॑तिः । जि॒ही॒ता॒म् ॥ १०.५९.२

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:59» मन्त्र:2 | अष्टक:8» अध्याय:1» वर्ग:22» मन्त्र:2 | मण्डल:10» अनुवाक:4» मन्त्र:2


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (राये) जीवनैश्वर्य के लिए (सामन् नु) समतल भूभाग में शीघ्र (निधिमत्-नु-अन्नं करामहे) धननिधिवाले के समान अदनीय-भोजनीय अन्न को सम्पादन करते हैं (पुरुध) बहुत प्रकार से (श्रवांसि सु) विविध अन्नों को भलीभाँति अच्छा खाने योग्य बनाते हैं (ता विश्वानि नः-जरिता ममत्तु) उन सबको प्राप्त करके हमारा वृद्ध महानुभाव तृप्त होवे (परातरं निर्ऋतिः सु जिहीताम्) कृच्छ्र आपत्ति बहुत दूर चली जाये ॥२॥
भावार्थभाषाः - जैसे कोई धनपति अपने यहाँ धन का कोष स्थापित करता है, ऐसे ही समतल भूमि में अन्न को उत्पन्न करके मानव को अपनी जीवनयात्रा को सुखपूर्वक चलाने के लिए अन्नसंग्रह करना चाहिए। इस प्रकार उन अन्नों से स्वयं तृप्त हों और अपने वृद्धों को भी तृप्त करें। भूख या भुखमरी अर्थात् दुर्भिक्ष आपत्ति जिससे न सताये, दूर रहे ॥२॥
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (राये) जीवनैश्वर्याय (सामन्-नु) सममिते भूभागे “साम समम्यने” [निरु० ७।१२] शीघ्रम् (निधिमत्-नु-अन्नं करामहे) धननिधिमदिवान्नमदनीयं भोज्यं सम्पादयामः (पुरुध) पुरुधा-बहुप्रकारेण (श्रवांसि-सु) विविधानि खल्वन्नानि खाद्यानि सुसम्पादयामः (ता विश्वानि नः-जरिता ममत्तु) तानि विश्वानि प्राप्येति शेषः, अस्माकं जरिता जीर्णो वृद्धोऽपि तृप्यतु “मदतेर्वा तृप्तिकर्मणः” [निरु० ९।५] (परातरं निर्ऋतिः सु जिहीताम्) कृच्छ्रापत्तिः सुगमतया बहुदूरं गच्छतु ॥२॥