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यत्ते॒ भूमिं॒ चतु॑र्भृष्टिं॒ मनो॑ ज॒गाम॑ दूर॒कम् । तत्त॒ आ व॑र्तयामसी॒ह क्षया॑य जी॒वसे॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yat te bhūmiṁ caturbhṛṣṭim mano jagāma dūrakam | tat ta ā vartayāmasīha kṣayāya jīvase ||

पद पाठ

यत् । ते॒ । भूमि॑म् । चतुः॑ऽभृष्टिम् । मनः॑ । ज॒गाम॑ । दूर॒कम् । तत् । ते॒ । आ । व॒र्त॒या॒म॒सि॒ । इ॒ह । क्षया॑य । जी॒वसे॑ ॥ १०.५८.३

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:58» मन्त्र:3 | अष्टक:8» अध्याय:1» वर्ग:20» मन्त्र:3 | मण्डल:10» अनुवाक:4» मन्त्र:3


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (ते) हे मानस रोग में ग्रस्त मनुष्य ! तेरा (यत्-मनः) जो मन (चतुर्भृष्टिं भूमिम्) चार अर्थात् ऊँची, नीची, गीली, रेतीली, तपाने-सतानेवाली, विभक्तियों-स्थलियोंवाली भूमि को (दूरकं जगाम) दूर चला गया है उस (ते तत्…पूर्ववत्) ॥३॥
भावार्थभाषाः - मानस रोग के रोगी का मन भ्रान्त होकर जब-“मैं ऊँचे पर्वत पर हूँ, मुझे कौन उतारे, मैं खड्डे में हूँ, मुझे कौन उभारे, मैं रेतीली भूमि में पड़ा हूँ या मैं कीचड़ में धँसा जा रहा हूँ” आदि प्रलाप करे, तो उस समय उसको आश्वासन दिया जाये कि हमने वहाँ से तुझे बचा लिया है आदि। इस प्रकार उसकी चिकित्सा करे ॥३॥
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (ते) हे मानसरोगे ग्रस्त जन ! तव (यत्-मनः) यन्मनोऽन्तःकरणम् (चतुर्भृष्टिं भूमिम्) चतस्रो भ्रष्टयो भर्जन्यो विषमभूमिविभक्तयो यस्यां तां भूमिम् (दूरकं जगाम) दूरं गतम् (ते तत्…) पूर्ववत् ॥३॥