पदार्थान्वयभाषाः - (महिषस्य ते चत्वारि नाम) तुझ महान् परमात्मा के चार नाम (असुर्याणि-अदाभ्यानि सन्ति) मन से मनन करने योग्य अर्थात् जागरितस्थान ब्रह्म अकार-‘अ’ से, स्वप्नस्थान ब्रह्म उकार-‘उ’ से, सुषुप्तस्थान ब्रह्म मकार-‘म’ से, तुरीय ब्रह्म अमात्र-विराम से, ये चारों नाम अविनश्वर-स्वाभाविक हैं (अङ्ग) हे प्रिय परमात्मन् ! (तानि विश्वानि वित्से) उन सब अन्य नामों को उन चारों नामों से प्राप्त होते हो, अतः वे चार मुख्य नाम हैं (येभिः कर्माणि मघवन् त्वं चकर्थ) उनसे भिन्न जिन ‘विष्णु’ आदि नामों से तू सृष्टिरचना आदि कर्म करता है ॥४॥
भावार्थभाषाः - महान् परमात्मा के चार स्वाभाविक नाम हैं, जो ‘ओ३म्’ की चार मात्राओं द्वारा कहे जाते हैं-मन से समझे जाते हैं। ‘अ’ से जागरितस्थान ब्रह्म, ‘उ’ से स्वप्नस्थान ब्रह्म, ‘म्’ से सुषुप्तस्थान ब्रह्म, पश्चात् अमात्र-विराम से तुरीय ब्रह्म। अन्य नाम इन्हीं नामों के अन्तर्गत हो जाते हैं। ये नाम स्वाभाविक हैं, स्वरूपबोधक हैं। इनसे भिन्न ‘विष्णु’ आदि कर्मनाम हैं, सृष्टि आदि कर्मों को दर्शानेवाले हैं ॥४॥