पदार्थान्वयभाषाः - (कः-मा ददर्श) वह कौन देव मुझे देखता है-जानता है, प्राणों में छिपे हुए या जलों के अन्तर्गत छिपे हुए को (कतमः सः-देवः-यः-मे बहुधा तन्वः) बहुतेरे देवों में कौन सुख देनेवाला प्रकाशक या विद्वान् है, जो मेरे बहुत सारे अङ्गों को या तरङ्गों को (परि-अपश्यत्) देखता है-जानता है (मित्रावरुणा) हे प्राणापानो इन्द्रियदेवों में अग्रभूत ! विद्युत् की शुष्क-आर्द्र धाराओं या उनके जाननेवाले मनीषी शिल्पियों ! (अग्नेः क्व-अह) मुझ ज्ञानी आत्मा या विद्युदग्नि के जाननेवाले अरे कहाँ (देवयानीः-विश्वाः-समिधः-क्षियन्ति) परमात्मा के प्रति जानेवाली, देवयान के साधनभूत, वैज्ञानिक विद्वान् को जनानेवाली सम्यग्दीप्त चेतन शक्तियाँ या सम्यग्दीप्तिनिमित्त तरङ्गें कहाँ रहती हैं, यह जानना चाहिए ॥२॥
भावार्थभाषाः - प्राणों के अन्दर आत्मा को कौनसा देव सुख देनेवाला आत्मा के अङ्गों को परमात्मा की ओर जानेवाली उसकी चेतनशक्तियों को जानता है। उसको समझना चाहिए। एवं-मेघजलों में निहित विद्युत् अग्नि की तरङ्गों को कौन वैज्ञानिक जानता है, जो परमात्मदेव को दर्शानेवाली हैं। उन्हें भी जानना चाहिए ॥२॥