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अस॑च्च॒ सच्च॑ पर॒मे व्यो॑म॒न्दक्ष॑स्य॒ जन्म॒न्नदि॑तेरु॒पस्थे॑ । अ॒ग्निर्ह॑ नः प्रथम॒जा ऋ॒तस्य॒ पूर्व॒ आयु॑नि वृष॒भश्च॑ धे॒नुः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

asac ca sac ca parame vyoman dakṣasya janmann aditer upasthe | agnir ha naḥ prathamajā ṛtasya pūrva āyuni vṛṣabhaś ca dhenuḥ ||

पद पाठ

अस॑त् । च॒ । स॒त् । च॒ । प॒र॒मे । विऽओ॑मन् । दक्ष॑स्य । जन्म॑न् । अदि॑तेः । उ॒पऽस्थे॑ । अ॒ग्निः । ह॒ । नः॒ । प्र॒थ॒म॒ऽजाः । ऋ॒तस्य॑ । पूर्वे॑ । आयु॑नि । वृ॒ष॒भः । च॒ । धे॒नुः ॥ १०.५.७

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:5» मन्त्र:7 | अष्टक:7» अध्याय:5» वर्ग:33» मन्त्र:7 | मण्डल:10» अनुवाक:1» मन्त्र:7


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अदितेः-उपस्थे) अविनाशी प्रकृति के उपाश्रय में (दक्षस्य जन्मन्) प्रवृद्ध जगत् के प्रादुर्भाव होने पर (सत्-च-असत्-च) नित्य चेतनतत्त्व और अनित्य जड़ वृक्षादि (परमे व्योमन्) परम व्यापक परमात्मा के अधीन प्रकट होते हैं, वह परम व्यापक (नः-प्रथमजाः-अग्निः) हमारा इष्टदेव-प्रथम प्रसिद्ध अग्नि-परम अग्नि अग्रणायक परमात्मा (ऋतस्य-पूर्वे-आयुनि) प्रकृति के प्रारम्भिक विकृति जीवन में (वृषभः-धेनुः) वीर्यसेचक पिता और धात्री-पालनेवाली माता भी है ॥७॥
भावार्थभाषाः - प्रकृति से प्रवृद्ध जगत् बना, इसमें चेतनतत्त्व मनुष्यादि और जड़ वृक्षादि हैं, जो परम व्यापक परमात्मा के अधीन हैं। वह प्रथम प्रसिद्ध महान् अग्नि-अग्रणायक परमात्मा प्रकृति से विकृति होने पर आदिसृष्टि के जीवन में पिता-रक्षक जनक और धात्री-माता भी होता है, आरम्भसृष्टि में परमात्मा ही माता-पिता का कार्य करता है। सदा उसकी उपासना करनी चाहिए और उसी की शरण लेनी चाहिए। इसी प्रकार राष्ट्र में राजा भी सब मनुष्यादि और वनस्पतियों के पालन करने की व्यवस्था करे, बैल आदि चार पैरवाले सवारी के योग्य पशुओं तथा दूध देनेवाली गौ आदि की ॥७॥
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अदितेः-उपस्थे) अखण्डितायाः-अविनाशिन्याः प्रकृतेः-उपाश्रये “अदितिः-अविनाशिनी प्रकृतिः” [ऋ० ।४४।११ दयानन्दः] (दक्षस्य जन्मन्) प्रवृद्धस्य जगतो जन्मनि प्रादुर्भावे सति “दक्ष-वृद्धौ” [भ्वादिः] तस्मिन् (सत्-च) नित्यं चेतनतत्त्वं “सत्-नित्यम्” [ऋ० ६।१८।४ दयानन्दः] (असत्-च) अनित्यं जडं वस्तु च “असत्-अनित्यम्” [अथर्व १०।७।१० ऋग्वेदादि-भाष्यभूमिकायां दयानन्दः] (परमे व्योमन्) परमे व्यापके परमात्मनि खल्वास्तां ते उभे प्रकटीभवतः, स च परमो व्योमा (नः प्रथमजाः-अग्निः-ह) अस्माकं प्रथमप्रसिद्धः परमात्मा-अग्निः (ऋतस्य पूर्वे आयुनि) कारणस्य प्रकृतेः “ऋतम्-कारणम्” [ऋ० १।१०। दयानन्दः] जीवने सृष्टिप्रादुर्भावकाले (वृषभः-धेनुः) वीर्यसेचकः पिता, स धेनुर्धात्री माता भवति “माता धेनुः” [श० २।२।१।२१] ॥७॥