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सु॒ब्रह्मा॑णं दे॒वव॑न्तं बृ॒हन्त॑मु॒रुं ग॑भी॒रं पृ॒थुबु॑ध्नमिन्द्र । श्रु॒तऋ॑षिमु॒ग्रम॑भिमाति॒षाह॑म॒स्मभ्यं॑ चि॒त्रं वृष॑णं र॒यिं दा॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

subrahmāṇaṁ devavantam bṛhantam uruṁ gabhīram pṛthubudhnam indra | śrutaṛṣim ugram abhimātiṣāham asmabhyaṁ citraṁ vṛṣaṇaṁ rayiṁ dāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सु॒ऽब्रह्मा॑णम् । दे॒वऽव॑न्तम् । बृ॒हन्त॑म् । उ॒रुम् । ग॒भी॒रम् । पृ॒थुऽबु॑ध्नम् । इ॒न्द्र॒ । श्रु॒तऽऋ॑षिम् । उ॒ग्रम् । अ॒भि॒मा॒ति॒ऽसह॑म् । अ॒स्मभ्य॑म् । चि॒त्रम् । वृष॑णम् । र॒यिम् । दाः॒ ॥ १०.४७.३

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:47» मन्त्र:3 | अष्टक:8» अध्याय:1» वर्ग:3» मन्त्र:3 | मण्डल:10» अनुवाक:4» मन्त्र:3


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सुब्रह्माणम्) शोभन वेदज्ञान के स्वामी (देवयन्तम्) मुमुक्षुओं के चाहनेवाले (बृहन्तम्) सर्वतो महान् (उरुम्) अनन्त (गभीरम्) अपार (पृथुबुध्नम्) सब जगत् के प्रथितमूल (श्रुतऋषिम्) ऋषियों द्वारा श्रवण करने योग्य (उग्रम्) सब के ऊपर विराजमान (अभिमातिषहम्) अभिमानी जनों के दबानेवाले परमात्मा को जानते हैं-मानते हैं (इन्द्र) वह तू इन्द्र ! (अस्मभ्यम्…) पूर्ववत् ॥३॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा उत्तम वेदज्ञान का स्वामी है। सबसे महान्, अनन्त, जगत् का आदि कारण, ऋषियों द्वारा श्रवण करने योग्य, सर्वोपरि विराजमान, अभिमानियों का मानमर्दक है। उस परमात्मा को जानना चाहिए, वह हमें निश्चितरूप से धन और सुख से संपन्न कर सकता है ॥३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

निरभिमान

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशाली प्रभो ! (अस्मभ्यम्) = हमारे लिये (रयिं दाः) = पुत्र नामक धन को दीजिये । उस पुत्र को जो [क] (सुब्रह्माणम्) = उत्कृष्ट स्तोत्रोंवाला है उत्तम स्तोत्रों के द्वारा प्रभु का स्तवन करनेवाला है। [ख] (देववन्तम्) = उत्तम दिव्यगुणोंवाला है, [ग] (बृहन्तम्) = बढ़ी हुई शक्तियोंवाला है, [घ] (उरुम्) = विशाल हृदय है, [ङ] (गभीरम्) = गम्भीर प्रकृति का है, [च] (पृथुब्रध्नम्) = जो विस्तीर्ण मूलवाला है। धर्मार्थ काम मोक्षों का आरोग्य ही उत्तम मूल है, यह आरोग्य जिसका खूब विस्तृत है, अर्थात् जिसके सब अंग-प्रत्यंग स्वस्थ हैं । [छ] (श्रुतऋषिम्) = जो वेद मन्त्रों का श्रवण करनेवाला है [ऋषि वेदः] ज्ञान की रुचिवाला है । [ज] (उग्रम्) = तेजस्वी है, [झ] (अभिमातिषाहम्) = अभिमान रूप शत्रु का पराभव करनेवाला है, निरभिमान है । [ञ] (चित्रम्) = ज्ञान देनेवाला है और वृषणम् शक्तिशाली है व औरों पर सुखों का वर्षण करनेवाला है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हमारे सन्तान मन्त्र वर्णित ग्यारह विशेषणों से विशिष्ट हों ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सुब्रह्माणम्) शोभनवेदज्ञानस्वामिनम् (देवयन्तम्) मुमुक्षून् कामयमानम् (बृहन्तम्) सर्वतो महान्तम् (उरुम्) विस्तीर्णमनन्तम् (गभीरम्) अपारम् (पृथुबुध्नम्) सर्वस्य जगतः प्रथितमूलरूपम् श्रुतऋषिम्) श्रुतः श्रोतव्य ऋषिभिस्तथाभूतो यस्तम् (उग्रम्) उद्गूर्णं सर्वत उपरि वर्तमानम् (अभिमातिषहम्) अभिमानिनां परिभावकं त्वामिन्द्रं परमात्मानं विद्म जानीम इति (इन्द्र) स त्वमिन्द्र ! (अस्मभ्यम्…) पूर्ववत् ॥३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - We know you, Indra, lord of divine speech, highest lover of divinities, greatest, boundless, deepest, foundation of the expansive universe, exalted among seers and sages, blazing lustrous, destroyer of opponents. Pray, bear and bring us abundant and wondrous wealth of the world.