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त्वं न॑ इन्द्र शूर॒ शूरै॑रु॒त त्वोता॑सो ब॒र्हणा॑ । पु॒रु॒त्रा ते॒ वि पू॒र्तयो॒ नव॑न्त क्षो॒णयो॑ यथा ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvaṁ na indra śūra śūrair uta tvotāso barhaṇā | purutrā te vi pūrtayo navanta kṣoṇayo yathā ||

पद पाठ

त्वम् । नः॒ । इ॒न्द्र॒ । शू॒र॒ । शूरैः॑ । उ॒त । त्वाऽऊ॑तासः । ब॒र्हना॑ । पु॒रु॒ऽत्रा । ते॒ । वि । पू॒र्तयः॑ । नव॑न्त । क्षो॒णयः॑ । य॒था॒ ॥ १०.२२.९

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:22» मन्त्र:9 | अष्टक:7» अध्याय:7» वर्ग:7» मन्त्र:4 | मण्डल:10» अनुवाक:2» मन्त्र:9


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (शूर इन्द्र) हे पापहिंसक प्रगतिशील परमात्मन् या राजन् ! (त्वं शूरैः-न) तू पापहिंसकधर्मा या वीरों, प्रगतिशीलों के द्वारा हमारी रक्षा कर (उत) तथा (बर्हणा त्वा ऊतासः) परिवृद्ध हिंसावाली परिस्थितियों या संग्रामभूमि में तेरे द्वारा रक्षित होवें (ते पूर्तयः-पुरुत्रा) तेरी यहाँ बहुत कम पूर्तियाँ (वि नवन्त) विशेषरूप से प्राप्त होती हैं (यथा क्षोणयः) जैसे भूमियाँ-भूमिस्थल सर्वत्र प्राप्त होती हैं ॥९॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा तथा राजा अपनी पराक्रमशक्तियों या सैनिकों के द्वारा पापों या पापियों का संहार करके रक्षा करता है-कठिन से कठिन स्थितियों में भी। तेरी कामपूर्तियों को साधक विशेषरूप से प्राप्त होते हैं, जैसे निवास के लिए भूप्रदेश सर्वत्र प्राप्त होते हैं ॥९॥
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (शूर इन्द्र) हे पापहिंसक ! “शूर पापाचरणानां हिंसक” [ऋ० ७।३२।२२ दयानन्दः] प्रगतिशील परमात्मन् राजन् वा ! “शूरः शवतेर्गतिकर्मणः” [निरु० ३।१३] (त्वं शूरैः-नः) त्वं पापहिंसकवीरैः प्रगतिशीलैर्वा-अस्मान् रक्षेत्यर्थः (उत) अपि (बर्हणा त्वा-ऊतासः) परिबर्हणायां पापपरिस्थितौ परिवृद्धहिंसायां सांग्रामिकभूमौ वा त्वया रक्षिताः स्यामेति यावत् (ते पूर्तयः पुरुत्रा) तव कामपूर्तयो बहुत्र (वि नवन्त) विशेषेण प्राप्यन्ते “नवति गतिकर्मा” [निघ० २।१४] ‘कर्मणि कर्तृप्रत्ययः’ (यथा क्षोणयः) भूमयो यथा सर्वत्र प्राप्यन्ते। तत्र सर्वत्र भूमिस्थलेषु प्राप्यन्ते ॥९॥