पदार्थान्वयभाषाः - (अध) जीवन के अन्तकाल में (उशनाः) जीवन की कामना करनेवाला आत्मा (रमन्ता पृच्छते) जाते हुए श्वास-प्रश्वासों से पूछता है कि यहाँ ठहरो, क्यों जाते हो ? (वाम्) तुम दोनों (नः) हमारे (गृहम्-आ) देहगृह के प्रति आओ (मर्त्यम्) मरणधर्मा देह से (पराकात्-दिवः-ग्मः-च) दूर से द्युलोक से तथा पृथ्वीलोक से भी (कदर्था-आ जग्मथुः) किस प्रयोजन के लिए आये हो ? ॥६॥
भावार्थभाषाः - जीवन के अन्तकाल में जीवन की कामना करनेवाला आत्मा जाते हुए प्राणापानों से पूछता है, तुम क्यों जाते हो ? यहीं ठहरे रहो अर्थात् मरणकाल में भी आत्मा इन प्राणापानों को नहीं त्यागना चाहता। यही चाहता है कि मेरे इस नश्वर देह में प्राण बने रहें। चाहे द्युलोक से चाहे पृथिवीलोक से आयें। प्राण-अपान किस प्रयोजन के लिए आये हैं, यह ठीक-ठीक समझ मनुष्य को उसके उपयोग के लिए आचरण करना चाहिए ॥६॥